रात अंधियारे में अपनी, दिन का सूरज कैद में
जो रचा दुनिया को वो भी, बन के मूरत कैद में
एक ही दुनिया में जी कर, ढंग सबके हैं अलग
फिक्र है जनता की हमको, उसकी नीयत कैद में
टूटते सपनों को मिल के, जोड़ना तू सीख ले
एकता किस्मत हमारी, और किस्मत कैद में
जंग सरहद पर अगर तो, खेत में भी जंग है
इक शहादत याद करते, इक शहादत कैद में
जी रहे संगीन के, साये में क्यों आवाम अब
कैमरे के संग कलम की, आज फितरत कैद में
खूबसूरत झील, नदियाँ, सरजमीं और वादियाँ
जिसको हम कहते हैं जन्नत, आज जन्नत कैद में
दूर तक देखो तो लगता, आसमां झुकता सुमन
खुद झुका ले आसमां क्या, तेरी ताकत कैद में
No comments:
Post a Comment