Sunday, April 30, 2017

दरकने लगा आईना

मैंने आँखें बिछायीं मगर आई ना,
और उदासी में डसने लगा आईना
आई ना, आई ना शोर करता रहा,
मन के भीतर दरकने लगा आईना

आई, ना ना वो करते मेरे पास जब,
सच कहूँ प्यास मिलने की आई न तब
वो तो आकर भी समझो अभी आई ना,
ऐसा लगता सिसकने लगा आईना

आईना जब कहीं सच दिखा ना सका,
ये हकीकत वो खुद को बचा ना सका
दिख रहा आईना, आईना हर तरफ,
टूट करके बिखरने लगा आईना

आईना एक बाहर तो अन्दर भी है,
और आँखों में गम का समन्दर भी है
वो हकीकत भी समझी मगर आई ना,
मन का सचमुच सिहरने लगा आईना

आई ना इस जनम में मगर आस है,
होगा तुमसे मिलन ये बची प्यास है
सात जन्मों का नाता मुहब्बत सुमन,
सोच करके चमकने लगा आईना 

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