देशभक्ति - जनहित की बातें, सब करते हैं संसद में
देख वही निज स्वारथ में अब, नित लडते हैं संसद में
मरी जनता बेचारी!
खेल तू संसद संसद!!
जो चुनकर जाते हैं अक्सर, लोगों संग आघात करे
नाम वही सुर्खी में दिखता, जो जितना अपराध करे
रोज बढ़ती बेकारी!
खेल तू संसद संसद!!
अब तक शासक जो भी आए, उनके वादे टूट गए
अर्थ-तंत्र का चक्र चला यूँ, परिजन तक भी छूट गए
देश में मारामारी!
खेल तू संसद संसद!!
भारत खातिर आमजनों को, मिलके कुछ करना होगा
अगर जरूरत पड़ी तो हँस के, सुमन तुझे मरना होगा
रुके अब ये बीमारी!
खेल तू संसद संसद!!
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