Saturday, May 13, 2017

रोटी में भगवान मुसाफिर

सबके  प्रश्न  समान  मुसाफिर
क्या  होते  भगवान  मुसाफिर
बिनु अनुभव के बाँट रहे क्यों
इक - दूजे को ज्ञान मुसाफिर

               जब  संकट में जान मुसाफिर
               लुप्त वहाँ सब ज्ञान मुसाफिर
               मुँह से  अनजाने  ही  निकले
               बचा मुझे  भगवान मुसाफिर

दिल में सबका मान मुसाफिर
सबके ऊपर  ध्यान मुसाफिर
कहना  मुश्किल बुरे  वक्त में
कौन बने  भगवान  मुसाफिर

               पूजा  और  अजान  मुसाफिर
               जीवों  का बलिदान मुसाफिर
               लेकिन भूखों को बस दिखता   
               रोटी  में   भगवान   मुसाफिर

प्रायः सब अनजान मुसाफिर
छुपे कहाँ  भगवान मुसाफिर
पर मुल्ला - पंडित को उनसे
गहरी  है  पहचान  मुसाफिर

               जहाँ  विवश विज्ञान मुसाफिर  
               तब  टूटे  अभिमान  मुसाफिर
               उसी  विवशता  में  खोजो  तो
               मिल सकते भगवान मुसाफिर

कई  अरजते  ज्ञान  मुसाफिर
कोई   है  धनवान   मुसाफिर
अन्तर्मन   से  सुमन   सोचता
कविता ही भगवान मुसाफिर 

7 comments:

'एकलव्य' said...

आपका वर्णन एवं रचना दोनों बेमिसाल हैं ,लिखते रहिये। हृदयतल से आभार। "एकलव्य"

'एकलव्य' said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 05 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

'एकलव्य' said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 05 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

'एकलव्य' said...

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'एकलव्य' said...

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'एकलव्य' said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 05 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Pammi singh'tripti' said...

बहुत बढियाँ

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