Thursday, September 7, 2017

उजला तन है

उजला तन है
दूषित मन है

मीठा रिश्ता
एक सपन है

प्रायः छूटे
जो परिजन है

उलझा उलझा
हर जीवन है

कितनों के छत
खुला गगन है

खाता है पर
वो जनधन है

आने वाला
काला धन है

हे भारत माँ
तुझे नमन है

जोड़े सबको
सदा सुमन है 

No comments:

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!