बात से ही बात बनती, हो इरादा काम का
या बना ले एक मुद्दा, जैसे मंदिर राम का
घर, कचहरी या कि संसद, हर जगह तकरार में
मोल तकरीरों का होता या बड़े कुछ नाम का?
रोज ऊँचाई से ऊँची, बात करना है अलग
जो नहीं व्यवहार करते, क्या असर पैगाम का?
रात दिन मिहनत करे जो फिर वही भूखा रहे
बात उनकी भी सुनो या सोच लो अंजाम का
होश में जगना, जगाना बात है मुश्किल सुमन
काम ये करता चलाचल सोच मत परिणाम का
या बना ले एक मुद्दा, जैसे मंदिर राम का
घर, कचहरी या कि संसद, हर जगह तकरार में
मोल तकरीरों का होता या बड़े कुछ नाम का?
रोज ऊँचाई से ऊँची, बात करना है अलग
जो नहीं व्यवहार करते, क्या असर पैगाम का?
रात दिन मिहनत करे जो फिर वही भूखा रहे
बात उनकी भी सुनो या सोच लो अंजाम का
होश में जगना, जगाना बात है मुश्किल सुमन
काम ये करता चलाचल सोच मत परिणाम का
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