कल्पना मेरी उतर कर आज आई आँख में
आ के दिल में बस गयी पर ना समाई आँख में
आग सदियों से विरह की जल रही पर ये खुशी
आने से उनके लगा ठंढक सी लाई आँख में
जिन्दगी के हर तजुर्बे आँख में दिखते मगर
वो तो केवल दर्द अपना क्यों दिखाई आँख मे
आँख से छलने, छलाने का चलन देखा बहुत
और उन आँखों में पाया है ढिठाई आँख में
आईना बाहर में इक तो एक अन्दर है सुमन
मन की आँखों से जो देखा वो लजाई आँख में
आ के दिल में बस गयी पर ना समाई आँख में
आग सदियों से विरह की जल रही पर ये खुशी
आने से उनके लगा ठंढक सी लाई आँख में
जिन्दगी के हर तजुर्बे आँख में दिखते मगर
वो तो केवल दर्द अपना क्यों दिखाई आँख मे
आँख से छलने, छलाने का चलन देखा बहुत
और उन आँखों में पाया है ढिठाई आँख में
आईना बाहर में इक तो एक अन्दर है सुमन
मन की आँखों से जो देखा वो लजाई आँख में
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