शून्य!
यानि कुछ भी नहीं,
लेकिन कभी कभी,
शून्य का मतलब खास होता है,
किंचित इसलिए विवेकानन्द को भी
शून्य में ब्रह्माण्ड का आभास होता है।
शून्य के साथ हमेशा,
शून्य खड़ा होता है
और विज्ञान के हिसाब से
हर खाली जगह में
शून्य ही शून्य भरा होता है।
शून्य मान देता है, सम्मान देता है,
और जो भी अंक इसके बाँयी तरफ आता
उसे दसगुनी पहचान देता है।
लेकिन अक्सर हम सब,
अपने शून्य से जीवन में,
परम्परा के नाम पर,
ब्रह्माण्ड-स्वरूपा नारी को,
सदियों से अपनी बाँयी ओर बिठाते हैं
और अपनी दसगुनी पहचान के बदले
जीवन भर उसका मजाक उड़ाते हैं।
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