औकात
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बात!
हाँ! सिर्फ बात,
फिर बात से बात,
जो कभी सौगात,
तो कभी आघात,
जिसके प्रभाव से ही,
उपजते हैं सबके दिल में,
अपने अपने जज्बात,
और वही जज्बात बनता है,
इक अन्तर्मन का आईना,
हमारे, आपके व्यक्तित्व का,
जिसमें स्पष्ट दिखता है,
सबको अपनी अपनी औकात।
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