जी सकूँ बस अपनी खतिर वो पहर मिलता नहीं
मिल रहे हमदर्द कितने, हमसफर मिलता नहीं
गाँव में बचपन गुजारा फिर भटकता ही रहा
अपनापन हो गाँव जैसा वो शहर मिलता नहीं
रोज हरियाली सिमटती और मशीनें लग रहीं
हर तरफ दिखते मकां पर कोई घर मिलता नहीं
सर झुकाना भावना से अपनी ये तहजीब है
वक्त पर जो सर उठाए ऐसा सर मिलता नहीं
प्यार की दीवानगी क्या देख मीरा का यकीं
जो सुमन को जिन्दगी दे वो जहर मिलता नहीं
मिल रहे हमदर्द कितने, हमसफर मिलता नहीं
गाँव में बचपन गुजारा फिर भटकता ही रहा
अपनापन हो गाँव जैसा वो शहर मिलता नहीं
रोज हरियाली सिमटती और मशीनें लग रहीं
हर तरफ दिखते मकां पर कोई घर मिलता नहीं
सर झुकाना भावना से अपनी ये तहजीब है
वक्त पर जो सर उठाए ऐसा सर मिलता नहीं
प्यार की दीवानगी क्या देख मीरा का यकीं
जो सुमन को जिन्दगी दे वो जहर मिलता नहीं
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