Monday, April 22, 2019

मगर बरसते धन चुनाव में

मीत  कौन,  दुश्मन चुनाव  में 
उलझन  ही उलझन चुनाव में 

रोटी  बिनु  तरसे  हैं  अनगिन 
मगर  बरसते  धन  चुनाव  में 

केवल  भाषण  में  विरोध पर
साथ  करें  भोजन  चुनाव  में 

दशकों छली गयी जो जनता
दिखती  है  बेमन  चुनाव  में 

मिल  सकते घर में प्रतिद्वंदी
बूथ  बना  आँगन, चुनाव में 

परम्परा   या  प्रगतिशीलता 
चुनो, बना  के मन चुनाव में 

आने वाले कल की खातिर 
सुमन जलाए तन चुनाव में 

No comments:

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!