Sunday, October 13, 2019

त्वरित न्याय का पैगाम

शिक्षक पढ़ा रहे थे  व्याकरण,
प्रश्न पूछा गया बताओ
समूहवाचक संज्ञा के उदाहरण,
उत्तर मिला - सभा, भीड़
सभा! अर्थात्
एक नेतृत्व और एक उद्देश्य।
लेकिन भीड़ !
यानि कोई नेतृत्व नहीं और
अलग अलग सबका ध्येय।

मगर हकीकत से हटकर
जब से सिर्फ भाषण में
हुआ है विकास का अवतरण
तब से पूरी तरह बदल गया है
सभा और भीड़ का समीकरण।
जिसके साथ ही बदल गया
हमारा सामाजिक व्याकरण।।

अब सभा को ना तो
एक नेतृत्व मिल पाता और
ना ही रह गया एक लक्ष्य का उपाय
लेकिन भीड़ ने शुरू किया एक नेतृत्व
और एक लक्ष्य का नूतन अध्याय।
इसलिए शायद अब भीड़,
करने लगी है त्वरित न्याय।

मुजरिम बनाना, पक्ष में दलील देना,
फैसला सुनाना और तत्काल सजा देना,
ये सारे रह गए हैं भीड़ के अब काम।
जिससे मुमकिन है मिले,
हमारी न्यायिक प्रक्रिया को
त्वरित न्याय करने का नया पैगाम।

सम्भव हो तो इसे तत्काल
अपनाने की जरूरत है,
और इसके लिए भला इससे
अच्छा कौन सा मुहूरत है?
जब लोग मुट्ठी बाँधने के बजाय
स्वतः मुट्ठी खोल रहे हैं
और मदहोश होकर
सत्ता की भाषा बोल रहे हैं।

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