मूल भाव त्योहार के, सुखी रहे जन सर्व।
पूजन, रीति-रिवाज से, मना रहे हर पर्व।।
भले तरीके हों अलग, मगर भावना एक।
मिल जुलकर हम सब रहें, बने सोच नित नेक।।
सभी धर्म का मूल है, मानव का कल्याण।
पढ़ने पर हर ग्रंथ को, मिलता स्वतः प्रमाण।।
रावण तोड़े नियम को, जब उसका उत्कर्ष।
मर्दन करते राम फिर, लोग मनाते हर्ष।।
संकल्पित संयम सदा, जीवन का वरदान।
खुद को खुद पहचानना, अनुपम सुख श्रीमान।।
मौलिक स्वर विज्ञान का, जितने रीति-रिवाज।
काल पात्र अनुसार ही, बदले जिसे समाज।।
केवल पढ़ने से नहीं, यह अनुभव की बात।
खुशियां जो हैं पर्व से, सुमन एक सौगात।।
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