समझ न पाया कहाँ अन्त है?
इच्छा भी सबकी अनन्त है।
अपने ढंग से कामकरे सब, जैसा जिनको साधन होता।
मिल जाती है जिन्हें सफलता, उनके यश का वन्दन होता।।
पद, पैसा, प्रभुता की खातिर, रिश्ते नाते छूट रहे।
नैतिकता और संस्कार के, बन्धन सारे टूट रहे।
गलत राह से पद पाते जो, उनका भी अभिनन्दन होता।
मिल जाती है जिन्हें -----
विद्यालय में ज्ञान-दान भी, क्यूँ लगता व्यापार बना?
मूल्य - बोध भी पीछे छूटा, कैसा अब संसार बना?
खुशी मनाओ पर ये सोचो, क्यों पड़ोस में क्रन्दन होता?
मिल जाती है जिन्हें -----
मानव का गहना विवेक है, हम विवेक से दूर बहुत।
तब कुबेर की लुटतीं खुशियाँ, आमलोग मजबूर बहुत।
संभल सुमन तू सही वक्त पे, अगर हृदय स्पन्दन होता!
मिल जाती है जिन्हें -----
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