कुछ पाने की चाह नहीं अब, मिल जाए इन्कार नहीं
ये दुनिया इतनी प्यारी फिर, कैसे कह दूँ प्यार नहीं
जो सुख-दुख भोगा जीवन में, वो हरदम महसूस किया
कदम-कदम पर सीख जिन्दगी, कुछ भी है बेकार नहींं
बेहतर हो परिवेश हमारा, रहती कोशिश हम सबकी
फिर आपस में है झगड़ा क्यूँ, वो कारण स्वीकार नहीं
क्या सिहरन होती है दिल में, देख बेबसी लोगों की
अगर नहीं तो मानव होने, का हमकोअधिकार नहीं
नैतिकता और मूल्य - बोध पर, अच्छी बातें सब करते
बिना आचरण इन बातों को, कभी मिला आधार नहीं
अपने अन्दर हो सुधार तो, सारी दुनिया सुधरेगी
ये वसुधा परिवार हमारा, बस अपना परिवार नहीं
अपने - अपने अनुभव से हम, आपस में बतियाते हैं
छोटी दुनिया भले सुमन की, मत समझो विस्तार नहीं
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