कभी, सभी के प्यारे कितने?
अभी जीत कर हारे कितने?
देखी सबने आग, आप में
आज बचे अंगारे कितने?
जो पलकों पे कभी बिठाया
उन आँखों के तारे कितने?
जहाँ खड़े समकक्ष कभी थे
अब दिखते बेचारे कितने?
पिछलग्गू बन कभी, किसी ने
अब तक पाँव पसारे कितने?
घातक खुद की राह छोड़ना
होंगे और किनारे कितने?
बस विचार है सुमन जिन्दगी
बाहर मिले सहारे कितने?
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