Saturday, May 29, 2021

जनता बनी अभागन

साँचो! निर्मोही तुम साजन।
नित  करते  यूँ   मनमानी  तुम,  दिखता  सूना  आँगन।।
साँचो! निर्मोही -----

बड़े भाग्य से किसी को मिलता, मुखिया का पद पावन।
तहस - नहस  कर  पद की गरिमा, क्यों बैठे उस आसन?
साँचो! निर्मोही -----

ज्ञाता  खुद  मान  करे  हो, खुद  का  खुद  गुण - गायन।
जबकि  तुमसे  आस  सभी  को, पर  संकट  में  जीवन।
साँचो! निर्मोही -----

सुमन   कौन   सुनता   अब  तेरे,  वादे  लोक - लुभावन?
अनगिन  लाशों  के  कारण  तुम, जनता  बनी  अभागन।
साँचो! निर्मोही -----

No comments:

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!