साँचो! निर्मोही तुम साजन।
नित करते यूँ मनमानी तुम, दिखता सूना आँगन।।
साँचो! निर्मोही -----
बड़े भाग्य से किसी को मिलता, मुखिया का पद पावन।
तहस - नहस कर पद की गरिमा, क्यों बैठे उस आसन?
साँचो! निर्मोही -----
ज्ञाता खुद मान करे हो, खुद का खुद गुण - गायन।
जबकि तुमसे आस सभी को, पर संकट में जीवन।
साँचो! निर्मोही -----
सुमन कौन सुनता अब तेरे, वादे लोक - लुभावन?
अनगिन लाशों के कारण तुम, जनता बनी अभागन।
साँचो! निर्मोही -----
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