प्रधानमंत्री उवाच - "भारत हिम्मत नहीं हारेगा"।
यकीन रखिए साहब! बिल्कुल नहीं हारेगा।
हम राम भरोसे थे, हैं और राम भरोसे रह लेंगे।
जब तक हम सबका राम है रखवाला,
तब तक हर भारतवासी है हिम्मतवाला।
हे नरेश! चाहे जैसा भी हो परिवेश!
हमनें तब भी हिम्मत कहाँ हारी?
जब आपने अचानक कर दी नोट बन्दी,
लागू किया जीएसटी और ताला बन्दी,
हम हजारों मील परिजन सँग पैदल चलते रहे,
और हफ्ते हफ्ते धूप में जल जलकर मरते रहे,
बाकी रोजगार के अभाव में भूख से तड़पते रहे।
हम चुनावों में कोरोना पोजिटिव होते रहे,
और आपके लिए तब भी पोजिटिव सोचते रहे।
हमने उस हाल में भी आपका साथ निभाया,
और आपके नाम का जयकारा लगाया।
हे प्रजा-हितकारी! सामने है भयानक महामारी,
सारे अस्पतालों में बेड के लिए मची मारामारी,
अपनों की एक एक साँसों की गिनती है जारी,
ऊपर से आक्सीजन की कमी और लाचारी!
जीवन-रक्षक दवाईयों की धड़ल्ले से कालाबाजारी।
एम्बुलेंस की लूट, कितनों के प्राण गये छूट।
लेकिन हे प्रजापति! हम फिर भी नहीं टूटे!
हमारे अपने, आँखों के सामने प्राण गंवाते रहे,
ऐसे बुरे हाल में भी, बार बार,लगातार,
हम अपनी हिम्मत को ही तो आजमाते रहे।
हे धर्मवीर! लोग बिल्कुल नहीं हैं अधीर!
गाँव, शहर सूने, श्मशानों में लाशों की भरमार,
देश के हर हिस्से में अंतिम संस्कार के लिए,
मृतक के परिजनों की लम्बी कतार,
ऊफ! कितना दुखद है ये जानलेवा इन्तजार?
हे प्रधान सेवक! सच कहता हूँ कि
ये सब आपकी उच्च नीतियों का ही है कमाल,
पवित्र गंगा भी अब दिखती जैसे लाशों की थाल।
हे धर्मपाल! अब तो आँखें खोलो,
मरनेवालों की असल संख्या कितनी है?
इतना भर तो सच सच बोलो!
नहीं बोलोगे, फिर भी आपके समर्थक,
करते रहेंगे कर्कश-स्वर में आपका यशोगान,
हम फिर भी अपनी हिम्मत नहीं हारेंगे श्रीमान!
हे प्रजा-प्रवर! हम सचमुच हैं हिम्मतवर,
किसी भी आपदा से नहीं डरते हैं,
लेकिन आपकी अदा पे जरूर मरते हैं।
तभी तो हमने, आपको दो दो बार चुना,
यह अलग बात है कि हम सबने बाद में,
आपको चुनकर, अपना ही सर धुना।
आखिर! आखिर कब-तक सहेंगे लोग?
अपनों के सामने ही अपनों के मरने का ताप,
और आप कब-तक थमाते रहेंगे लाॅलीपाॅप?
हे सर्वज्ञ! आप बनाए रखें अपना जोश और होश,
हम भारतवासियों के मन है बहुत अधिक संतोष।
मुँह में लाॅलीपाॅप रख हम बार बार विचारेंगे,
लेकिन किसी भी हाल में, कभी हिम्मत नहीं हारेंगे।
हे कल्कि अवतार! अब रोकिए अपना प्रचार।
क्योंकि पूरा का पूरा देश ही है अभी बीमार।
आपने लगातार अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक,
डाक्टर, प्रशासन के अधिकारियों का,
जाने अनजाने किया है अपमान,
और देखिए! उसका दुष्परिणाम!
सड़कों पर महीनों से पड़े हैं अन्नदाता किसान।
वो भी कितने जीवट हैं? अबतक हिम्मत नहीं हारे!
हे दीनदयाल! लोगों को पूछने दीजिए सवाल!
आपने तो बहुत चालाकी से टुकड़े टुकड़े में,
हमारी आपसी मिल्लत को चुपके से बाँटा,
और विपक्षियों को दोष देकर बेवजह डांटा।
रेल, भेल, कोल, सेल हमारी अर्जित,
सारी की सारी सम्पत्तियां खुलेआम बिक रहीं हैं।
आपने ये क्या से क्या कर डाला?
अपने कारनामे छुपाने के लिए चुपके से
चौथे खंभे पर लगाया सरकारी ताला!
इतना सब कुछ होने पर भी,
हम भारतवासी क्या हिम्मत हारे?
हे संन्यासी शासक! सत्ता के साधक, उपासक।
हम कभी हिम्मत नहीं हारे हैं, नहीं हारेंगे,
और आप भी हिम्मत नहीं हारना,
हाँ ! झोला उठाने का यही उचित समय है,
जल्द से सिंहासन छोड़कर देशवासियों को,
इस जानलेवा संकट से निश्चित ही उबारना।
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