आपस में ही सुमन चमन के, लड़-लड़ करके जीते हैं
वर्ग-विभाजन फूलों में भी, माली जब खुद करता हो
उपवन में कम गिनती जिसकी, डर-डर के जीते हैं
पौधे विवश हुए उपवन के, बिना खाद और पानी के
बारिश, जाड़ा, गरमी में भी, थर-थर करके जीते हैं
इतना सुन्दर सजा बगीचा, जिस माली की मिहनत से
उनका दोष गिने ये माली, बड़-बड़ करके जीते हैं
जीवन सबका इस दुनिया में, मानो सचमुच नेमत है
उजड़ गए हैं यहाँ चमन कुछ, मर-मर करके जीते हैं
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