साधो! तू नकली रणवीरा।
केवल पाप भरो गठरी में, लेकर भाग फकीरा।।
साधो! तू नकली -----
तेरे कारण घर - घर फैली, है नफरत की आँधी।
देख देख के स्वर्ग - लोक में, रोते होंगे गाँधी।
लद गए दिन अच्छे अब तेरे, उल्टा बहे समीरा।।
साधो!? तू नकली -----
मन की बातें करते रहते, जन की सुन लो भाई।
जहाँ बोलना बहुत जरूरी, चुप रहते क्यों सांई?
ताज छिने जाने के डर से, सूरत दिखे अधीरा।।
साधो! तू नकली -----
देश-भक्त के रक्त से सिंचित, लोकतंत्र है भारत।
करे तिजारत जनहित की जो, उसको नहीं इजाजत।
दर्पण लेकर निकले जन जन, बन के सुमन कबीरा।।
साधो! तू नकली -----
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