करते  पूजन  व्यक्ति  की, चारण बन के लोग।।
सामाजिक   सद्भाव  के,  मंत्र   गढ़े   साहित्य।
सहजीवन  सहयोग  का, तब  उगता आदित्य।।
आस - पास  जो  तख्त  के, खूब  मनाते जश्न।
कलमकार  पूछे  सदा, शासक - गण  से  प्रश्न।।
जोड़े  सकल  समाज  को, लेखन  वही सटीक। 
चमक दमक में कुछ बिके, जो लिखते थे ठीक।।
क्यों लिखते हो क्या लिखें, करना सदा विचार।
हम  जन  की उलझन  लिखें, वो पूजे सरकार।।
नफरत  के  बाजार  में, मत  भड़काओ  आग।
सच लिखना जिससे बढ़े, सामाजिक अनुराग।।
कभी  नहीं लिखना सुमन, पाया क्या सम्मान?
ऐसे  जो  खुद  से  करे, खुद  का ही अपमान।।




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