बस वादों का महल बनाया, ख्वाब दिखाकर चले गए
है उनका घर भी शीशे का, मारे पत्थर चले गए
ठगा ठगा सा नौजवान अब, खुद को ही महसूस रहा
कुछ दिन तक ये भी चारण थे, गीत सुनाकर चले गए
जब किसान लड़ते खेतों में, तब जवान भी लड़ पाते
क्यूं किसान है अब सड़कों पर, ऐसा क्या कर चले गए
सदा विरोधी रहे देश में, पर शासक सबका होता
अब सवाल करने पर यारों, आँख दिखाकर चले गए
आमलोग खुशहाल जहाँ पर, नेक देश कहलाता है
मगर सुमन वो दिखा आंकड़े, फिर उलझाकर चले गए
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