जब चुनाव में होश नहीं है
नेता जी का दोष नहीं है
सहने के अभ्यासी इतने
अब लोगों में रोष नहीं है
नित पाबन्दी अधिकारों पर
जनमत में अफसोस नहीं है
कारण वैचारिक मुर्दापन
दिखे कहीं आक्रोश नहीं है
रोज बढ़े सरकारी खर्चे
जनता खातिर कोष नहीं है
अगली पीढ़ी के भविष्य का
चिन्तन के सँग होश नहीं है
रोज जगाता फिर मत कहना
यार सुमन में जोश नहीं है
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