नित होते अन्याय को, देख रहे हम, आप।
अगली पीढ़ी के लिए, जो होगा अभिशाप।।
राष्ट्र समझ लो फिर करो, राष्ट्रवाद की बात।
राष्ट्रवाद के नाम पर, मत कुचलो जज्बात।।
देशद्रोह विरले करे, राजद्रोह है आम।
राजद्रोह को दे रहे, देशद्रोह का नाम।।
सत्ता के विष - दंत से, घायल हुआ समाज।
हम आपस में लड़ रहे, उनका चलता राज।।
जहाँ सभी को देश में, अवसर एक समान।
उसी देश को विश्व में, मिले सदा सम्मान।।
लोग सियासी यूँ बने, फैलाते उन्माद।
इस कारण से बढ़ रहा, सामाजिक अवसाद।।
मानवता का पाठ ही, सभी धरम का मूल।
चलो सुमन कोशिश करें, हो समाज समतूल।।
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