पथिक जैसे भटकता मन, कहीं आधार मिल जाए
सभी की जिन्दगी को इक, नया संसार मिल जाए
नहीं मुमकिन हुआ अबतक, मगर आशा अभी बाकी
भले झूठा सही लेकिन, किसी का प्यार मिल जाए
दिखा के शान आपस में, अदावत क्यों किया करते
हमेशा एक दूजे की, शिकायत क्यों किया करते
अजब दुनिया है जिनके साथ, जीते हम यहाँ अक्सर
उसी को छोड दूजे से, मुहब्बत क्यों किया करते
जताया तुमने मुझ पे जो, वही विश्वास काफी है
तुम्हारे साथ बीते पल का, हर एहसास काफी है
मनाने रूठने का भी मजा, होता अलग लेकिन
मिला है जख्म तुमसे पर, तुम्हीं से आस काफी है
कभी आता नहीं है कल, हमेशा आज आया है
खुशी का तब ठिकाना क्या, अगर हमराज आया है
किया श्रृंगार धरती ने, लताएँ, पेड, पर्वत सँग,
ये मंजर और सुमन कहता, अभी ऋतुराज आया है
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