मजबूरी की ये कुर्सी या, कुर्सी की मजबूरी है
इक तरफा ही प्यार अचानक, दिखा रहे क्यूँ आपस में
जबकि सचमुच इन लोगों में, एक दशक की दूरी है
कल तक जिनके वो निन्दक थे, अब केवल तारीफ करे
किसी तरह से ताज मिले बस, उनकी चाहत पूरी है
कहीं खौफ से, कहीं प्यार से, और कहीं पर मक्कारी
गिरगिट सा बस रंग बदलना, ये इनकी दस्तूरी है
भाव कलम के समझो प्यारे, दर्पण में खुद को देखो
वरना पछताओ जीवन भर, शब्द - सुमन कस्तूरी है
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