कहेंगे लोग क्या मुझको, अगर ये डर नहीं होता
तो फिर ये गाँव अपना इस तरह सुन्दर नहीं होता
शरीफों के लिबासों में, यहाँ घूमे मवाली भी
महल संभव बड़े उनके, मगर वो घर नहीं होता
बनाते घर सभी अपना, मगर कुछ टूट जाते हैं
वो घर टूटे बुजुर्गों का, जहाँ आदर नहीं होता
भला कैसे ये मुमकिन है, सभी मुद्दों पे बोलें ही
अभी चुपचाप जो बैठा, सभी कायर नहीं होता
तजुर्बे से सुमन महसूस कर, लिखना जरूरी है
हजारों लिख रहे लेकिन, सभी शायर नहीं होता
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