Tuesday, July 1, 2025

जब कालचक्र घूमे तो

ये सबको  है  एहसास, डरे वो भीतर से।
पर मन से जो बदमाश, डरे वो भीतर से।।

जीवन जीने का सपना, सुख-दुख है सबका अपना। 
सुख  की  चर्चा  से दूरी, बस केवल दुख को जपना।
महफिल में बनते खास, डरे वो भीतर से।।
पर मन से जो -----

जिसको  भी  गले  लगाते, उसके घर आग जलाते। 
जिसने  भी  चाहा  इनको, अब  रो-रोकर पछताते। 
दिखते मन के ऐय्याश, डरे वो भीतर से।।
पर मन से जो -----

वो  जाते  जहाँ  वहीं  के, पर  दर्शन  करे  मही के।
जब  कालचक्र  घूमे  तो, फिर  होते  नहीं कहीं के।
ये सुमन को है विश्वास, डरे वो भीतर से।।
पर मन से जो -----

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