Monday, June 1, 2009

सपना

बचपन से ही सपन दिखाया, उन सपनों को रोज सजाया।
पूरे जब न होते सपने, बार-बार मिलकर समझाया।
सपनों के बदले अब दिन में, तारे देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

पढ़-लिखकर जब उम्र हुई तो, अवसर हाथ नहीं आया।
अपनों से दुत्कार मिली और, उनका साथ नहीं पाया।
सपन दिखाया जो बचपन में, आँखें दिखा रहा है।
प्रतिभा को प्रभुता के आगे, झुकना सिखा रहा है।
अवसर छिन जाने पर चेहरा, अपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

ग्रह-गोचर का चक्कर है यह, पंडितजी ने बतलाया।
दान-पुण्य और यज्ञ-हवन का, मर्म सभी को समझाया।
शांत नहीं होना था ग्रह को, हैं अशांत घर वाले अब।
नए फकीरों की तलाश में, सच से विमुख हुए हैं सब।
बेबस होकर घर में मंत्र का, जपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

रोटी जिसको नहीं मयस्सर, क्यों सिखलाते योगासन?
सुंदर चहरे, बड़े बाल का, क्यों दिखलाते विज्ञापन?
नियम तोड़ते, वही सुमन को, क्यों सिखलाते अनुशासन?
सच में झूठ, झूठ में सच का, क्यों करते हैं प्रतिपादन?
जनहित से विपरीत ख़बर का, छपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

26 comments:

abhivyakti said...

sundar rachna

ताऊ रामपुरिया said...

रोटी जिसको नहीं मयस्सर, क्यों सिखलाते योगासन?
सुंदर चहरे, बड़े बाल का, क्यों दिखलाते हैं विज्ञापन?

बहुत सार्थक और सटीक रचना.

रामराम.

Anonymous said...

सुंदर एवं यथार्थपरक कविता....हमेशा की तरह......

रोटी जिसको नहीं मयस्सर, क्यों सिखलाते योगासन?
सुंदर चहरे, बड़े बाल का, क्यों दिखलाते हैं विज्ञापन?

आपकी ये पंक्तियाँ पढ़कर मुझे फिल्म राजू बन गया जैनटलमैन का नाना पाटेकर का ये संवाद याद हो आया.....दांत मजबूत करो, ऐसा दिखाते हैं टी वी पे. अरे यहाँ खाने को रोटी नहीं है, दांत मजबूत करके क्या चप्पल चबायेगा....

साभार
हमसफ़र यादों का.......

रंजू भाटिया said...

सुन्दर अभिव्यक्ति ..अच्छी लगी आपकी यह रचना

राज भाटिय़ा said...

एक भावूक रचना, बहुत ही सुंदर भाव.
धन्यवाद

sada said...

बहुत ही अच्‍छी रचना ।

आभार ।

स्वप्न मञ्जूषा said...

श्यामल भैया,
सपनों के बदले अब दिन में, तारे देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।

मैं नहीं चाहती कि आप दिन में तारे देखें, लेकिन जहाँ तक कविता का प्रश्न है
बहुत खूब, लिखा है आपने
वैसे भी
'सपना कभी न अपना'
बहुत सारगर्भित कविता बनी है |
अनेकोअनेक बधाइयाँ

प्रिया said...

प्रतिभा को प्रभुता के आगे, झुकना सिखा रहा है।
अवसर छीन जाने पर चेहरा, अपना देख रहा हूँ।
सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।


Bahut sunder!

Vinay said...

लाजवाब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बाल्यकाल के सपनों की,
महपिल को रोज सजाता हू।
पूरे कभी नहीं होंगे,
मैं मन ही मन पछताता हूँ।

सुन्दर कविता के लिए बधाई।

Manish Kumar said...

दूसरा और तीसरा छंद बेहद पसंद आया।

रश्मि प्रभा... said...

बहुत अच्छी कविता......एक आग्रह है,
जून माह के कवि सम्मलेन में शामिल होने के लिए अपनी आवाज़ में अपनी रचना भेजे.....शुरू में अपना परिचय,कविता शीर्षक और हिंद-युग्म के प्रति अभिवादन शामिल करें......१८ जून अंतिम तारीख है. rasprabha@gmail.com पर भेजें

रावेंद्रकुमार रवि said...

सपना हुआ न अपना फिर भी, सपना देख रहा हूँ।।
------------------------------------
अपना हुआ न अपना फिर भी, अपना देख रहा हूँ।।
------------------------------------

दिनेशराय द्विवेदी said...

पंडित जी सोचें जरा, दुनिया में ऐसा क्यों है? क्या दुनिया बदली नहीं जा सकती?

गौतम राजऋषि said...

सुंदर रचना कविवर

Yogesh Verma Swapn said...

suman ji bahut pyaari rachna,

sapna hua na poora............

wah. badhai.

श्यामल सुमन said...

स्नेह समर्थन मिला बहुत सबको है आभार।
यह मेरा सौभाग्य है मिले सदा ही प्यार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Vandana Singh said...

bahut hi sunder rachna hai sir
apki kuch rachnaye padhi or bhi padhne ki koshis karoongi sabhi lajavab thi .....thanks

RADHIKA said...

बहुत ही सुन्दर छंद बद्ध कविता ,जितनी ताल बद्ध उतना ही आज की दुनिया से कदम ताल मिलाती हुई ,आपको इस कविता के लिए बहुत बहुत बधाई

निर्मला कपिला said...

shyamal ji bahut hee sunder steek rachna hai khaskar antim pehra man ko chho gayaa aabhaar

अनिल कान्त said...

bahut bahut bahut achchhi rachna

Science Bloggers Association said...

सामाजिक विद्रूपताओं पर आपने पैनी नजर डाली है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Science Bloggers Association said...

सामाजिक विद्रूपताओं पर आपने पैनी नजर डाली है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Unknown said...

shabd-shabd kavita
anand ras ki sarita
sarita jo pyas bujhati nahin jagati hai
antarman k dwar ki ghanti bajati hai
badhai !!!!!!

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!