मिलन में नैन सजल होते हैं, विरह में जलती आग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
आए पतंगा बिना बुलाए कैसे दीप के पास।
चिंता क्या परिणाम की उसको पिया मिलन की आस।
जिद है मिलकर मिट जाने की यह कैसा अनुराग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
वीणा की वाणी होती क्या तबले में आवाज।
सुर सजते जब चोट हो तन पे और ह्रदय पर दाग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
चाँद को देखे रोज चकोरी क्या बुझती है प्यास।
कमल खिले निकले जब सूरज होते अस्त उदास।
हँसे कुमुदिनी चंदा के संग रोये सुमन का बाग़।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
Tuesday, June 9, 2009
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27 comments:
आए पतंगा बिना बुलाए कैसे दीप के पास।
चिंता क्या परिणाम की उसको पिया मिलन की आस।
जिद है मिलकर मिट जाने की यह कैसा अनुराग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
श्यामल भईया
अति सुन्दर , बहुत बढ़िया
बस ऐसे ही अपना राग, अनुराग छलकाते रहें
baah kya baat hai aapki lekhani me......nishabda ho gaye
प्रियतम प्रेम है दीपक राग....सुन्दर
मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
बहुत खूब बहुत सही और सुन्दर कहा आपने ..शुक्रिया
"मिलन में नैन सजल होते है और दिलो में आग लगती है "
अरे भाई बहुत सुन्दर क्या कहने बधाई.
"मिलन में नैन सजल होते है और विरह में दिलो में आग लगती है "
अरे भाई बहुत सुन्दर क्या कहने बधाई. खुश होकर एक टीप और. बधाई हो बधाई श्यामल जी
shabdon ki saari mithas nichod kar aapne apne geeton me bhar dee hai..........bade meethe lagte hain...
badhai
badhai
badhai
मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
वीणा की वाणी होती क्या तबले में आवाज।
सुर सजते जब चोट हो तन पे और ह्रदय पर दाग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
.......bahut khoob
मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
वीणा की वाणी होती क्या तबले में आवाज।
सुर सजते जब चोट हो तन पे और ह्रदय पर दाग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
.......bahut khoob
मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
वीणा की वाणी होती क्या तबले में आवाज।
सुर सजते जब चोट हो तन पे और ह्रदय पर दाग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
.....bahut khoob
सच कहू तो प्यार तो यही है, जो परिणाम की परवाह ना करे.
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद
सुन्दर गीत है।बधाई स्वीकारें।
बहुत सुन्दर गीत!!
"मिलन में नैन सजल होते हैं,
विरह में जलती आग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।"
सुन्दर रचना।
बधाई।
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! वाह वाह क्या बात है! आपकी सुंदर पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया बिल्कुल सही कहा है आपने की प्यार का पहला शब्द ही अधुरा होता है!
आपने इतना ख़ूबसूरत कविता लिखा है जो काबिले तारीफ है! बहुत बढ़िया लगा !
सुंदर गीत....................बहुत खूब.....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
आप सबके प्यार और समर्थन के लिए अनेकानेक धन्यवाद।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
वीणा की वाणी होती क्या तबले में आवाज।
सुर सजते जब चोट हो तन पे और ह्रदय पर दाग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग
सुमन जी ...............लाजवाब प्रेम रस में डूबी खूबसूरत रचना............
बहुत खूबसूरत रचना ...आभार !
prem ko anootha roop dene ke liye shukriya.........prem hai deepak raag.........waah!
कमल खिले निकले जब सूरज होते अस्त उदास।
हँसे कुमुदिनी चंदा के संग रोये सुमन का बाग़।
good one!
आए पतंगा बिना बुलाए कैसे दीप के पास।
चिंता क्या परिणाम की उसको पिया मिलन की आस।
जिद है मिलकर मिट जाने की यह कैसा अनुराग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
श्यामल भाई,
रचना आपकी तन्मयता से गुनगुनायी जा सकती हैं आपकी मेहनत काबिले तारीफ है
जबर्दस्त कविता । मैं मुग्ध हूँ । स्वभाववश नहीं, प्रभाववश ।
जिद है मिलकर मिट जाने की यह कैसा अनुराग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
waaah!
abhi padhi aap ki teeno rachnaon mein ..
yah kavita sab se adhik pasand aayi.
क्या लिखूं आपने तो सभी कुछ तो वर्णन कर दिया
चंदा तो एक बार माह में प्रसन्न होता है
सूर्ये किसके विरह में अपने आप को जलाता है
कोई तो बता दे टूटे हुए दिल को अपनी कहानी अपनी जबानी
श्यामल भईया
अति सुन्दर , बहुत बढ़िया
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