लूट लिया है रखवालों ने चप्पा चप्पा भारत का।
राजनीति और जनसेवा तो पेशा बना तिजारत का।।
जगत-गुरू कहते हम खुद को रूप बदलकर बार बार।
ज्ञान, योग की सीख थी पहले आज सिखाते भ्रष्टाचार।।
ढ़ोंग रचाकर जनसेवा की निज-सेवा करते जन-नायक।
राष्ट्र-द्रोह को राष्ट्र-प्रेम की संज्ञा देते हैं नालायक।।
घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।
निश्चित सबकी टूट चुकी है राम-राज्य पाने की आशा।।
कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
राजनीति और जनसेवा तो पेशा बना तिजारत का।।
जगत-गुरू कहते हम खुद को रूप बदलकर बार बार।
ज्ञान, योग की सीख थी पहले आज सिखाते भ्रष्टाचार।।
ढ़ोंग रचाकर जनसेवा की निज-सेवा करते जन-नायक।
राष्ट्र-द्रोह को राष्ट्र-प्रेम की संज्ञा देते हैं नालायक।।
घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।
निश्चित सबकी टूट चुकी है राम-राज्य पाने की आशा।।
कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
23 comments:
कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
बहुत सुंदर कवित्त-आभार सुमन जी
क्रान्ति का सूत्रपात जनता से होता है, जनता से ही कोई नेता निकलता है। लेकिन आज सर्वाधिक भ्रष्ट जनता ही है, इसी कारण सारे ही राजनेता और नौकरशाह भ्रष्ट निकल रहे हैं। ये जनता ही रिश्वत दे देकर इन सबको भ्रष्ट बना रही है। आपकी कविता बहुत ही श्रेष्ठ है। लेकिन मुझे क्रांन्ति का सूत्रपात भी कहीं से दिखायी नहीं देता इसलिए यह लिख दिया।
डाक्साब सही कह रही हैं,सहमत हूं उनसे।
घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।
निश्चित सबकी टूट चुकी है राम-राज्य पाने की आशा।।
बिल्कुल सही कहा। मुद्दे की गंभीरता पर बेहद ईमानदारी से अपनी बात रखी है आपने।
सत्य वचन
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
एक राह है बचने कि अब फिर से क्रांति उठे ... बहुत अच्छी रचना !एक आह्वान जिसकी आज के समय में बहुत ज़रूरत है .
hamara blog bhi dekhen shayad aapko achchha lage
घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।
निश्चित सबकी टूट चुकी है राम-राज्य पाने की आशा।।
बहुत सुन्दर, ये समझिये कि यही दर्द हम भी लिए फिर रहे है अपने अन्दर !
अपने समय की प्रवृत्तियों को सही ढंग से उदघाटित किया है आपने।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
ढ़ोंग रचाकर जनसेवा का निज-सेवा करते जन-नायक।
राष्ट्र-द्रोह को राष्ट्र-प्रेम की संज्ञा देते हैं नालायक।।
नमन है आपकी लेखनी को इस बेजोड़ रचना के लिए...आज के हालात को तार तार कर दिखा दिया है आपने...बहुत दिनों बाद पढ़ा आपको सुमन जी लेकिन आनंद आ गया...वाह...बधाई..
नीरज
आप की कविता के एक एक शव्द से सहमत हुं जी, बहुत सुंदर.
धन्यवाद
sach kaha .........aaj phir ek baar kranti uthni chahiye.........desh ho ya samaj ya insaan kuch bhi kah lo sab behal hain..........bahut hi sashakt rachna.
"कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं
कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने की
क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।"
वाह...!
बहुत खूब..!
रातों की मीठी निंदिया में,
सुन्दर स्वप्न सजाया है।
मरुथल की बंजर धरती में,
श्यामल सुमन खिलाया है।।
"कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं
कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने की
क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।"
वाह...!
बहुत खूब..!
रातों की मीठी निंदिया में,
सुन्दर स्वप्न सजाया है।
मरुथल की बंजर धरती में,
श्यामल सुमन खिलाया है।।
कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
Bikul sahi kaha aapne....
Aapki rachna ne tees hari kar di aur sachmuch lagta hai ab kranti ka aawahan kiye bina any koi marg nahi...
Bahut hi sundar sarthak rachna..
कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
sakht zaroorat hai kranti ki.
सुमन है भूखा प्यार का जो पाया भरपूर।
स्नेह समर्थन संग में है सलाह मंजूर।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
सुन्दर कविता आभार आपका !!!
सच्चा सच्चा तीखा तीखा
घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।.nice
वाह!!
ढ़ोंग रचाकर जनसेवा का निज-सेवा करते जन-नायक।
राष्ट्र-द्रोह को राष्ट्र-प्रेम की संज्ञा देते हैं नालायक।।
-सटीक बात!
बहुत बढ़िया !
वाह...!
बहुत खूब..!
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