Friday, October 30, 2009

पुकार

लूट लिया है रखवालों ने चप्पा चप्पा भारत का।
राजनीति और जनसेवा तो पेशा बना तिजारत का।।

जगत-गुरू कहते हम खुद को रूप बदलकर बार बार।
ज्ञान, योग की सीख थी पहले आज सिखाते भ्रष्टाचार।।

ढ़ोंग रचाकर जनसेवा की निज-सेवा करते जन-नायक।
राष्ट्र-द्रोह को राष्ट्र-प्रेम की संज्ञा देते हैं नालायक।।

घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।
निश्चित सबकी टूट चुकी है राम-राज्य पाने की आशा।।

कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।

23 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
बहुत सुंदर कवित्त-आभार सुमन जी

अजित गुप्ता का कोना said...

क्रान्ति का सूत्रपात जनता से होता है, जनता से ही कोई नेता निकलता है। लेकिन आज सर्वाधिक भ्रष्‍ट जनता ही है, इसी कारण सारे ही राजनेता और नौकरशाह भ्रष्‍ट निकल रहे हैं। ये जनता ही रिश्‍वत दे देकर इन सबको भ्रष्‍ट बना रही है। आपकी कविता बहुत ही श्रेष्‍ठ है। लेकिन मुझे क्रांन्ति का सूत्रपात भी कहीं से दिखायी नहीं देता इसलिए यह लिख दिया।

Anil Pusadkar said...

डाक्साब सही कह रही हैं,सहमत हूं उनसे।

मनोज कुमार said...

घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।
निश्चित सबकी टूट चुकी है राम-राज्य पाने की आशा।।
बिल्कुल सही कहा। मुद्दे की गंभीरता पर बेहद ईमानदारी से अपनी बात रखी है आपने।

प्रमोद ताम्बट said...

सत्य वचन
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in

प्रज्ञा पांडेय said...

एक राह है बचने कि अब फिर से क्रांति उठे ... बहुत अच्छी रचना !एक आह्वान जिसकी आज के समय में बहुत ज़रूरत है .

प्रज्ञा पांडेय said...

hamara blog bhi dekhen shayad aapko achchha lage

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।
निश्चित सबकी टूट चुकी है राम-राज्य पाने की आशा।।

बहुत सुन्दर, ये समझिये कि यही दर्द हम भी लिए फिर रहे है अपने अन्दर !

Arshia Ali said...

अपने समय की प्रवृत्तियों को सही ढंग से उदघाटित किया है आपने।
--------------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं

नीरज गोस्वामी said...

ढ़ोंग रचाकर जनसेवा का निज-सेवा करते जन-नायक।
राष्ट्र-द्रोह को राष्ट्र-प्रेम की संज्ञा देते हैं नालायक।।
नमन है आपकी लेखनी को इस बेजोड़ रचना के लिए...आज के हालात को तार तार कर दिखा दिया है आपने...बहुत दिनों बाद पढ़ा आपको सुमन जी लेकिन आनंद आ गया...वाह...बधाई..
नीरज

राज भाटिय़ा said...

आप की कविता के एक एक शव्द से सहमत हुं जी, बहुत सुंदर.

धन्यवाद

vandana gupta said...

sach kaha .........aaj phir ek baar kranti uthni chahiye.........desh ho ya samaj ya insaan kuch bhi kah lo sab behal hain..........bahut hi sashakt rachna.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं
कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने की
क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।"

वाह...!
बहुत खूब..!

रातों की मीठी निंदिया में,
सुन्दर स्वप्न सजाया है।
मरुथल की बंजर धरती में,
श्यामल सुमन खिलाया है।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं
कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने की
क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।"

वाह...!
बहुत खूब..!

रातों की मीठी निंदिया में,
सुन्दर स्वप्न सजाया है।
मरुथल की बंजर धरती में,
श्यामल सुमन खिलाया है।।

रंजना said...

कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।

Bikul sahi kaha aapne....

Aapki rachna ne tees hari kar di aur sachmuch lagta hai ab kranti ka aawahan kiye bina any koi marg nahi...

Bahut hi sundar sarthak rachna..

Yogesh Verma Swapn said...

कलियाँ ही नित कुचलीं जातीं कैसे सुमन खिले उपवन में।
एक राह अब है बचने का क्रांति उठे फिर जन-गण मन में।।

sakht zaroorat hai kranti ki.

श्यामल सुमन said...

सुमन है भूखा प्यार का जो पाया भरपूर।
स्नेह समर्थन संग में है सलाह मंजूर।।

सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com

Mishra Pankaj said...

सुन्दर कविता आभार आपका !!!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सच्चा सच्चा तीखा तीखा

Randhir Singh Suman said...

घोटाला अब राष्ट्र-धर्म है पशुता बनी राष्ट्र की भाषा।.nice

Udan Tashtari said...

वाह!!

ढ़ोंग रचाकर जनसेवा का निज-सेवा करते जन-नायक।
राष्ट्र-द्रोह को राष्ट्र-प्रेम की संज्ञा देते हैं नालायक।।


-सटीक बात!

Satish Saxena said...

बहुत बढ़िया !

संजय भास्‍कर said...

वाह...!
बहुत खूब..!

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