कहीं बस्ती गरीबों की कहीं धनवान बसते हैं
सभी मजहब के मिलजुल के यहाँ इन्सान बसते हैं
भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं
करे ईमान की बातें बहुत नादान होता है
मिले प्रायः उसे आदर बहुत बेईमान होता है
यही क्या कम है अचरज कि अभीतक तंत्र जिन्दा है,
बुजुर्गों के विचारों का बहुत अपमान होता है
सभी कहते भला जिसको बहुत सहता है बेचारा
दया का भाव गर दिल में तो कहलाता है बेचारा
है शोहरत आज उसकी जो नियम को तोड़ के चलते,
नियम पे चलने वाला क्यों बना रहता है बेचारा
अलग रंगों की ये दुनिया बहुत न्यारी सी लगती है
बसी जो आँख में सूरत बहुत प्यारी सी लगती है
अलग होते सुमन लेकिन सभी का एक उपवन है,
कई मजहब की ये दुनिया अलग क्यारी सी लगती है
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16 comments:
सुन्दर कविता ..........श्यामल जी ....धन्यवाद
अलग होते सुमन लेकिन सभी का एक उपवन है,
कई मजहब की ये दुनिया अलग क्यारी सी लगती है...
सुन्दर भाव ...!!
सुमन जी इस अद्भुत रचना के लिए आपको ढेरों बधाईयाँ...बहुत ही उच्च कोटि की रचना है...वाह...
नीरज
adbhut lekhan.............badhayi
कहीं बस्ती गरीबों की कहीं धनवान बसते हैं।
सभी मजहब के मिलकर के यहाँ इन्सान बसते हैं।
भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।
खुबसुरत भाव..
सभी कहते भला जिसको बहुत सहते हैं बेचारा।
दया का भाव गर दिल में उसे कहते हैं बेचारा।
है शोहरत आज उसकी जो नियम को तोड़ के चलते,
नियम पे चलने वाले क्यों बने रहते हैं बेचारा।।
.........नसीब अपना-अपना
सभी कहते भला जिसको बहुत सहते हैं बेचारा।
दया का भाव गर दिल में उसे कहते हैं बेचारा।
है शोहरत आज उसकी जो नियम को तोड़ के चलते,
नियम पे चलने वाले क्यों बने रहते हैं बेचारा।।
waah shyamal suman ji.......bahut bahut achchi rachna
bahut achcha geet
"भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।"
कितनी सहजता है इसमें । जैसे मन का पवित्र भाव ही अभिव्यक्त हो चला है । आभार ।
behatareen rachna. badhaai.
डा.रमा द्विवेदी....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सुमन जी...बधाई...
सुमन जी आपकी प्रतिक्रिया स्पैम में चली जा रही है...सिर्फ़ आपकी प्रतिक्रिया के साथ ऐसा क्यों हो रहा है मुझे पता नहीं चल रहा है...सादर..
सुन्दर कविता,सुन्दर भाव....वाह...!
अलग रंगों की ये दुनिया बहुत न्यारी सी लगती है।
बसी जो आँख में सूरत बहुत प्यारी सी लगती है।
अलग होते सुमन लेकिन सभी का एक उपवन है,
कई मजहबो की दुनिया अलग क्यारी सी लगती है।।
नमस्कार!श्यामल जी,
बहुत सुन्दर मुक्तक है ।
आपके प्रोत्साहन से मेरे लेखनी को नयी उर्जा मिलती है। विनम्र आभार प्रेषित है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
"भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।"
मस्त रची है !
बहुत सुंदर कविता सबको जोड कर रखने वाली ।
भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।
बेहतरीन भाव. आखिर इन नफरत फैलाने वालो के चपेट मे हम कब तक आते रहेंगे
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