Thursday, November 5, 2009

चेतना

कहीं बस्ती गरीबों की कहीं धनवान बसते हैं
सभी मजहब के मिलजुल के यहाँ इन्सान बसते हैं
भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं

करे ईमान की बातें बहुत नादान होता है
मिले प्रायः उसे आदर बहुत बेईमान होता है
यही क्या कम है अचरज कि अभीतक तंत्र जिन्दा है,
बुजुर्गों के विचारों का बहुत अपमान होता है

सभी कहते भला जिसको बहुत सहता है बेचारा
दया का भाव गर दिल में तो कहलाता है बेचारा
है शोहरत आज उसकी जो नियम को तोड़ के चलते,
नियम पे चलने वाला क्यों बना रहता है बेचारा

अलग रंगों की ये दुनिया बहुत न्यारी सी लगती है
बसी जो आँख में सूरत बहुत प्यारी सी लगती है
अलग होते सुमन लेकिन सभी का एक उपवन है,
कई मजहब की ये दुनिया अलग क्यारी सी लगती है

16 comments:

Mishra Pankaj said...

सुन्दर कविता ..........श्यामल जी ....धन्यवाद

वाणी गीत said...

अलग होते सुमन लेकिन सभी का एक उपवन है,
कई मजहब की ये दुनिया अलग क्यारी सी लगती है...
सुन्दर भाव ...!!

नीरज गोस्वामी said...

सुमन जी इस अद्भुत रचना के लिए आपको ढेरों बधाईयाँ...बहुत ही उच्च कोटि की रचना है...वाह...

नीरज

vandana gupta said...

adbhut lekhan.............badhayi

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

कहीं बस्ती गरीबों की कहीं धनवान बसते हैं।
सभी मजहब के मिलकर के यहाँ इन्सान बसते हैं।
भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।

खुबसुरत भाव..

रश्मि प्रभा... said...

सभी कहते भला जिसको बहुत सहते हैं बेचारा।
दया का भाव गर दिल में उसे कहते हैं बेचारा।
है शोहरत आज उसकी जो नियम को तोड़ के चलते,
नियम पे चलने वाले क्यों बने रहते हैं बेचारा।।
.........नसीब अपना-अपना

श्रद्धा जैन said...

सभी कहते भला जिसको बहुत सहते हैं बेचारा।
दया का भाव गर दिल में उसे कहते हैं बेचारा।
है शोहरत आज उसकी जो नियम को तोड़ के चलते,
नियम पे चलने वाले क्यों बने रहते हैं बेचारा।।


waah shyamal suman ji.......bahut bahut achchi rachna
bahut achcha geet

Himanshu Pandey said...

"भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।"

कितनी सहजता है इसमें । जैसे मन का पवित्र भाव ही अभिव्यक्त हो चला है । आभार ।

Yogesh Verma Swapn said...

behatareen rachna. badhaai.

रमद्विवेदी said...

डा.रमा द्विवेदी....

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सुमन जी...बधाई...
सुमन जी आपकी प्रतिक्रिया स्पैम में चली जा रही है...सिर्फ़ आपकी प्रतिक्रिया के साथ ऐसा क्यों हो रहा है मुझे पता नहीं चल रहा है...सादर..

Meenu Khare said...

सुन्दर कविता,सुन्दर भाव....वाह...!

सुनीता शानू said...

अलग रंगों की ये दुनिया बहुत न्यारी सी लगती है।
बसी जो आँख में सूरत बहुत प्यारी सी लगती है।
अलग होते सुमन लेकिन सभी का एक उपवन है,
कई मजहबो की दुनिया अलग क्यारी सी लगती है।।
नमस्कार!श्यामल जी,
बहुत सुन्दर मुक्तक है ।

श्यामल सुमन said...

आपके प्रोत्साहन से मेरे लेखनी को नयी उर्जा मिलती है। विनम्र आभार प्रेषित है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

अर्कजेश said...

"भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।"


मस्त रची है !

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर कविता सबको जोड कर रखने वाली ।

M VERMA said...

भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,
जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं।
बेहतरीन भाव. आखिर इन नफरत फैलाने वालो के चपेट मे हम कब तक आते रहेंगे

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!