सभी आधुनिक सुख पाने को हरदम करे प्रयास।
इस कारण से रिश्ते खोये आपस का विश्वास।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।
उनसे बात नहीं होती थी जो बसते परदेश में।
क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ -----
बच्चों के भी नामकरण का पहले बहुत विधान।
सम्भव आने वाले कल से नम्बर हो पहचान।
कोमल - भाव हृदय के तब तो होंगे सदा उदास।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ -----
जिस चाहत में काम करें हम हो करके मजबूर।
ये भी सच की इस चक्कर में बहुत खुशी से दूर।
काँटों में हो सुमन फँसा पर है खुशियों की आस?
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ -----
Sunday, December 13, 2009
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23 comments:
बिलकुल सच कहा आपने :
"भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"
सब सुख सुविधा रहते हुए भी बस एक चीज़ की कमी होगई है वह है वक़्त . शुभकामनायें !!
क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?...
नहीं ना .....
सभी आधुनिक सुख पाने को हरदम करे प्रयास।
इस कारण से रिश्ते खोये आपस का विश्वास....
बहुत सही ....!!
बहुत सटीक बात!
"भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"
wah wahm "भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"
bilkul sateek sarthak samyik. badhaai.
किसी को दो मीठे बोल बोलने की फुर्सत नहीं .. किसी को दो मीठे बोल सुनने की फुर्सत नहीं .. क्या रह गया है हमारा जीवन ??
"उनसे बात नहीं होती थी जो बसते परदेश में।
क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?"
बिलकुल सच्ची बात ! यांत्रिकता ने अहसासों को छीन लिया है हमसे । आभार प्रविष्टि का ।
बिलकुल सच कहा आपने :
"भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"
बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुंदर रचना....
जिस चाहत में काम करें हम हो करके मजबूर।
ये भी सच की इस चक्कर में बहुत खुशी से दूर।
सुमन फँसा हो काँटों में जब क्या खुशियों की आस।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।
आज पर सटीक, सुमन जी !
wah ... achhi rachna..
जाने यह वक़्त कहाँ किस भंवर में डूब गया !
सभी आधुनिक सुख पाने को हरदम करे प्रयास।
इस कारण से रिश्ते खोये आपस का विश्वास।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।
सही कहा है।
उत्तम भाव।
बिलकुल सही बात कही आज किसी के पास वक्त नहीं सब अपनी अपनी आपाधापी मे खोये हुये हैं । रचना बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद्
सही कहा आपने , हम अपने ही गुलाम हो गए
कितना यथार्त वर्णन है आज के इन्सान का । पैसा और अधिक पैसा कमाने की अंधी दौड में बेतहाशा भाग रहे इन्सान के पास सब कुछ है एक वक्त को छोडकर ।
वक्त नहीं है फिर भी टिप्पणी दिया आपने खास।
मेरी लेखनी और चलेगी बढ़ा और विश्वास।
स्नेह और आभार सुमन का यही सुमन के पास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
उनसे बात नहीं होती थी जो बसते परदेश में।
क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।
बहुत सुन्दर.
इस कविता की अलग मुद्रा है, अलग तरह का संगीत, जिसमें कविता की लय तानपुरा की तरह लगातार बजती रहती है। अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
भाई वाह
जिस चाहत में काम करें हम हो करके मजबूर।
ये भी सच की इस चक्कर में बहुत खुशी से दूर।
सुमन फँसा हो काँटों में जब क्या खुशियों की आस।
बहुत खूब बहुत सुन्दर
दिल को छू जाने वाली रचना
दिल को छू लेने वाला भाव। बधाई।
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छोटी सी गल्ती, जो बड़े-बड़े ब्लॉगर करते हैं।
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
बिल्कुल सटीक बात कही है......बहुत सुन्दर रचना है..बधाई।
हाँ जी सर ,
बहुत सही लिखा है आप ने बहुत ही कम शब्दों में बहुत कुछ लिखा है आप ने में आप कि बात से सहमत हूँ और खास कर मुझे पसंद आया वो चिट्ठी के सन्देश वाली बात क्यूंकि सच में जब फ़ोन नया-नया आया था तभी जब दिवाली होली पर रिश्तेदारों कि चिठ्ठी आया करती तो बहुत बेसब्री से इंतज़ार हुआ करता था उन खतों का GEETTINGS का मगर अब तो सब बस फ़ोन पर sms भेज कर हे होजाता है ....keep writting and keep reading....all the best
reagrd
Pallavi...
हाँ जी सर ,
बहुत सही लिखा है आप ने बहुत ही कम शब्दों में बहुत कुछ लिखा है आप ने में आप कि बात से सहमत हूँ और खास कर मुझे पसंद आया वो चिट्ठी के सन्देश वाली बात क्यूंकि सच में जब फ़ोन नया-नया आया था तभी जब दिवाली होली पर रिश्तेदारों कि चिठ्ठी आया करती तो बहुत बेसब्री से इंतज़ार हुआ करता था उन खतों का GEETTINGS का मगर अब तो सब बस फ़ोन पर sms भेज कर हे होजाता है ....keep writting and keep reading....all the best
reagrd
Pallavi...
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