Sunday, December 13, 2009

वक्त नहीं मेरे पास

सभी आधुनिक सुख पाने को हरदम करे प्रयास।
इस कारण से रिश्ते खोये आपस का विश्वास।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।

उनसे बात नहीं होती थी जो बसते परदेश में।
क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।

बच्चों के भी नामकरण का पहले बहुत विधान।
सम्भव आने वाले कल से नम्बर हो पहचान।
कोमल भाव हृदय के तब तो होंगे सदा उदास।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।

जिस चाहत में काम करें हम हो करके मजबूर।
ये भी सच की इस चक्कर में बहुत खुशी से दूर।
सुमन फँसा हो काँटों में जब क्या खुशियों की आस।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।

23 comments:

Kusum Thakur said...

बिलकुल सच कहा आपने :
"भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"
सब सुख सुविधा रहते हुए भी बस एक चीज़ की कमी होगई है वह है वक़्त . शुभकामनायें !!

वाणी गीत said...

क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?...
नहीं ना .....
सभी आधुनिक सुख पाने को हरदम करे प्रयास।
इस कारण से रिश्ते खोये आपस का विश्वास....
बहुत सही ....!!

Udan Tashtari said...

बहुत सटीक बात!

Yogesh Verma Swapn said...

"भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"


wah wahm "भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"

bilkul sateek sarthak samyik. badhaai.

संगीता पुरी said...

किसी को दो मीठे बोल बोलने की फुर्सत नहीं .. किसी को दो मीठे बोल सुनने की फुर्सत नहीं .. क्‍या रह गया है हमारा जीवन ??

Himanshu Pandey said...

"उनसे बात नहीं होती थी जो बसते परदेश में।
क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?"

बिलकुल सच्ची बात ! यांत्रिकता ने अहसासों को छीन लिया है हमसे । आभार प्रविष्टि का ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बिलकुल सच कहा आपने :
"भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।"

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुंदर रचना....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जिस चाहत में काम करें हम हो करके मजबूर।
ये भी सच की इस चक्कर में बहुत खुशी से दूर।
सुमन फँसा हो काँटों में जब क्या खुशियों की आस।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।

आज पर सटीक, सुमन जी !

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah ... achhi rachna..

रश्मि प्रभा... said...

जाने यह वक़्त कहाँ किस भंवर में डूब गया !

डॉ टी एस दराल said...

सभी आधुनिक सुख पाने को हरदम करे प्रयास।
इस कारण से रिश्ते खोये आपस का विश्वास।
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।

सही कहा है।
उत्तम भाव।

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सही बात कही आज किसी के पास वक्त नहीं सब अपनी अपनी आपाधापी मे खोये हुये हैं । रचना बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद्

डॉ महेश सिन्हा said...

सही कहा आपने , हम अपने ही गुलाम हो गए

Asha Joglekar said...

कितना यथार्त वर्णन है आज के इन्सान का । पैसा और अधिक पैसा कमाने की अंधी दौड में बेतहाशा भाग रहे इन्सान के पास सब कुछ है एक वक्त को छोडकर ।

श्यामल सुमन said...

वक्त नहीं है फिर भी टिप्पणी दिया आपने खास।
मेरी लेखनी और चलेगी बढ़ा और विश्वास।
स्नेह और आभार सुमन का यही सुमन के पास।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

वन्दना अवस्थी दुबे said...

उनसे बात नहीं होती थी जो बसते परदेश में।
क्या मिठास अपनापन भी था चिट्ठी के संदेश में?
अब तो बातें हर पल सम्भव, क्या वैसा एहसास?
भैया जी ऽऽऽऽऽऽऽ क्योंकि वक्त नहीं मेरे पास।।
बहुत सुन्दर.

मनोज कुमार said...

इस कविता की अलग मुद्रा है, अलग तरह का संगीत, जिसमें कविता की लय तानपुरा की तरह लगातार बजती रहती है। अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।

Pawan Kumar said...

भाई वाह

जिस चाहत में काम करें हम हो करके मजबूर।
ये भी सच की इस चक्कर में बहुत खुशी से दूर।
सुमन फँसा हो काँटों में जब क्या खुशियों की आस।

बहुत खूब बहुत सुन्दर
दिल को छू जाने वाली रचना

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

दिल को छू लेने वाला भाव। बधाई।
------------------
छोटी सी गल्ती, जो बड़े-बड़े ब्लॉगर करते हैं।
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।

परमजीत सिहँ बाली said...

बिल्कुल सटीक बात कही है......बहुत सुन्दर रचना है..बधाई।

Pallavi saxena said...

हाँ जी सर ,

बहुत सही लिखा है आप ने बहुत ही कम शब्दों में बहुत कुछ लिखा है आप ने में आप कि बात से सहमत हूँ और खास कर मुझे पसंद आया वो चिट्ठी के सन्देश वाली बात क्यूंकि सच में जब फ़ोन नया-नया आया था तभी जब दिवाली होली पर रिश्तेदारों कि चिठ्ठी आया करती तो बहुत बेसब्री से इंतज़ार हुआ करता था उन खतों का GEETTINGS का मगर अब तो सब बस फ़ोन पर sms भेज कर हे होजाता है ....keep writting and keep reading....all the best

reagrd

Pallavi...

Pallavi saxena said...

हाँ जी सर ,

बहुत सही लिखा है आप ने बहुत ही कम शब्दों में बहुत कुछ लिखा है आप ने में आप कि बात से सहमत हूँ और खास कर मुझे पसंद आया वो चिट्ठी के सन्देश वाली बात क्यूंकि सच में जब फ़ोन नया-नया आया था तभी जब दिवाली होली पर रिश्तेदारों कि चिठ्ठी आया करती तो बहुत बेसब्री से इंतज़ार हुआ करता था उन खतों का GEETTINGS का मगर अब तो सब बस फ़ोन पर sms भेज कर हे होजाता है ....keep writting and keep reading....all the best

reagrd

Pallavi...

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