कहना कठिन हुआ कि मुझे तुमसे प्यार है
न कहा, नहीं खबर ही मगर इन्तजार है
शाखों से लिपटी बेल को देखा जो ख्वाब में
क्या ख्वाब पूरे होंगे ये दिल बेकरार है
हालात दिल का समझा आँखों में डूबकर
दुनिया समझ न पायी क्या अख्तियार है?
टकराना पर्वतों से या इश्क हो किसी से
परिणाम दर्द मिलता, जो बेशुमार है
जो इश्क न किया तो ये जिन्दगी अधूरी
हर हाल में सुमन को भ्रमर स्वीकार है
Monday, December 21, 2009
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17 comments:
bahut badhiyaa!!
टकराना पर्वतों से या इश्क हो किसी से
परिणाम दर्द मिलता, जो बेशुमार है
टकराना पर्वतों से या इश्क हो किसी से
परिणाम दर्द मिलता, जो बेशुमार है
-Bahut khoob!!
(Roman me likhne ke liye mafi, computer ne virus hamle me dum thod diya hai, do boond aandhu usi ke naam)
Komal bhavon ki atisundar abhivyakti.....Waah !!!
Sabhi sher hridayhari....
bahut hi sundar bhav liye hue hain poori kavita...
hamesha ki tarah...
हर हाल में सुमन को भ्रमर स्वीकार है . bahut sunder pankti hai ..
टकराना पर्वतों से या इश्क हो किसी से
परिणाम दर्द मिलता, जो बेशुमार है
bahut khooob!
prem ke adbhut rang magar anjaam ek hi!
पर्वतों से टकराने से होने वाला दर्द और इश्क का दर्द एक जैसा लग रहा है आपको ...
किसी पत्थर की मूरत को दिल में बसा लिया है क्या ...:)...
अच्छी कविता ...!!
"हालात दिल का समझा आँखों में डूबकर
दुनिया समझ न पायी क्या अख्तियार है?"
इन पंक्तियों ने पूरी रचना को अलग-सा प्रभाव दिया है । आभार ।
Wahwa...kya girah lagaai hai aapne..
aapki tvarit kavya pritikriya sukhad lagti hai.
shukriya...
aapki prastut gazal ke liye SADHUWAD..
शानदार और मनमोहक।
टकराना पर्वतों से या इश्क हो किसी से
परिणाम दर्द मिलता, जो बेशुमार है
बहुत सुन्दर।
मगर टकराना भी तो बहादुरों का ही काम होता है, फिर चाहे वो पर्वत हो या आशिक।
आप इस "सुमन" को हमेशा इतने अच्छे से इस्तेमाल करते हैं अपनी पंक्तियों में कि अचंभित रह जाते हैं हम तो कवि की लेखने पे।
टकराना पर्वतों से या इश्क हो किसी से
परिणाम दर्द मिलता, जो बेशुमार है
जो इश्क न किया तो ये जिन्दगी अधूरी
हर हाल में सुमन को भ्रमर स्वीकार है
वाह वाह
सुमन जी बहुत सुन्दर रचना है बधाई
bahut hi sundar.
आप सबके स्नेह और समर्थन मेरे कलम को ताकत मिलती है। श्यामल सुमन का विनम्र आभार प्रेषित है।
यूँ ही स्नेह बनाये रखें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत नाजुक कविता है। लगता है सफर आपको इतना भा गया है कि मंजिल तब पहुँचने की जल्दी नहीं है।
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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