मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
कहने को होते कुछ अपना।
लेकिन सच अपनापन सपना।
समझौते लाखों कर लें पर,
रहता जीवन में अनबन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
अनजाने में प्यार किसी से।
क्या जीवन-व्यवहार उसी से?
इस उलझन में उलझ के जीवन,
बनता पतझड़ के उपवन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
जिसकी खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
रोज सीखते जो जीवन से।
संघर्षों से, स्पन्दन से।
उस पलास का जीवन कैसा?
जीता खुशबू-हीन सुमन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
कहने को होते कुछ अपना।
लेकिन सच अपनापन सपना।
समझौते लाखों कर लें पर,
रहता जीवन में अनबन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
अनजाने में प्यार किसी से।
क्या जीवन-व्यवहार उसी से?
इस उलझन में उलझ के जीवन,
बनता पतझड़ के उपवन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
जिसकी खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
रोज सीखते जो जीवन से।
संघर्षों से, स्पन्दन से।
उस पलास का जीवन कैसा?
जीता खुशबू-हीन सुमन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
28 comments:
यही तो जीवन है .. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति दी आपने विचारों को !!
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
आपकी स्मृति दीर्घा लांघते हुए कब अपनी दीर्घा में पहुँच गयी पता ही नहीं चला बहुत बधाई इस सुंदर प्रस्तुति
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।
सुमन जी आप की हर रचना जीवन का सच लिये होती है। बहुत सुन्दर है ये रचना बधाई
मन का मीत न मिले तो जीवन कठिन हो जाता है
ज्यादातर लोगों का जीवन इस निर्धनता में गुजरता है .लेकिन आज का मनुष्य शायद इस धन के बारे में ही भूल चुका है . गीत के माध्यम से आपने एक महत्वपूर्ण दशा के बारे में इंगित किया , सुंदर .
उम्दा व लाजवाब रचना , बधाई ।
उस पलास का जीवन कैसा?
जीता खुशबू-हीन सुमन-सा।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, आभार
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
.......waah
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।बहुत बढ़िया रचना है।बधाई।
रोज सीखते जो जीवन से।
संघर्षों से, स्पन्दन से।
उस पलास का जीवन कैसा?
जीता खुशबू-हीन सुमन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
रोज सीखते जो जीवन से।
संघर्षों से, स्पन्दन से।
उस पलास का जीवन कैसा?
जीता खुशबू-हीन सुमन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
nihayat hi khoobsurat kavy rachna har lihhaj se .
bhaav ,shabd vinyas ,dhara pravaah man ko choo gayi aapki ye rachna
daad kubool karen
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
बहुत सुन्दर रचना , सुमन जी। बधाई।
बहुत सुंदर कविता कही आप ने , सच है अगर मन का मीत ना मिले तो जिन्दगी दुभर हो जाती है
वेदना की अद्भुत अभिव्यक्ति ! कविता मे व्यंजित जिजीविषा और अदम्य उत्साह अनुकरणीय !!
"गिरा-अर्थ संयोग से काव्य-सुमन सुरभीत !
रसमय निर्झर कह रहा जीवन की यह रीत !!"
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
bahut khoob.........bahut sundar sandesh deti rachna.
वाह, क्या शब्द हैं -
समझौता लाखों कर लें पर,
रहता जीवन में अनबन-सा।
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
.........
WAAH BHAIYA WAAH !!!! LAJAWAAB !!!!
SACHMUCH MAN KO MATH KAR JO MOTI NIKLA HAI,WAH ANMOL HAI.....
मन का मीत न मिले तो जीवन कठिन हो जाता है
बहुत सुंदर कविता कही आप ने , सच है अगर मन का मीत ना मिले तो जिन्दगी दुभर हो जाती है
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं भैया...
ये भाव भी जाने पहचाने हैं...ऐसा ही तो लगता है..!!
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
वाकई तब तो जीवन बन्धन सा लगेगा ही. बहुत ही सुन्दर है आपकी अभिव्यक्ति
बेहतरीन
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है । बधाई स्वीकारें
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।
behatareen panktian, lajawaab abhivyakti suman ji dil ko chhhote shabd.
अच्छी रचना है।
दिया आपने बहुत ही प्यार।
प्रेषित है सबको आभार।
है चाहत कि और कहें कुछ,
मानें इसको भाव-नमन-सा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
जीवन के रंग समेटे खूबसूरत रचना । आभार ।
बहुत भावभीनी पंक्तियॉ है।
मन-सा मीत न मिले तो बना लीजिये। भाव-जगत भर जायेगा।
इस अच्छी कविता के लिये बधाई।
बहुत सुंदर गीत गुरुदेव! बहुत ही सुंदर...मुखड़ा तो इतना भाया कि चुरा कर ले जा रहा हूँ।
"जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा"
अहा...!!!
नमस्ते अंकल..
इतना गहरा अर्थ छिपाए ये गीत, मुझ जैसे नासमझ को कहाँ समझ आता..
आपने समझाया तो हर एक पंक्ति ने मेरे भाव जगत को धनी कर दिया..
निवेदन है की इस गीत की संक्षिप्त व्याख्या भी पोस्ट करें..
शशिकान्त
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