हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगा
बह रही उल्टी हवा से जूझना अच्छा लगा
दुख ही दुख जीवन का सच है लोग कहते हैं यही
दुख में भी सुख की झलक को ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा
हैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगा
रिश्ते टूटेंगे बनेंगे जिन्दगी की राह में
साथ अपनों का मिला तो घूमना अच्छा लगा
कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा
दे गया संकेत पतझड़ आगमन ऋतुराज का
तब भ्रमर के संग सुमन को झूमना अच्छा लगा
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25 comments:
कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा
श्यामल जी...आपने अपने अच्छा लगने की बात जिस तरह ग़ज़ल में पिरोइ है..बहुत बढ़िया लगा..हमको आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी....धन्यवाद
बहुत दिनों के बाद आपका लिखा हुआ पढना अच्छा लगा !
आपने ब्लॉग लिखा अच्छा लगा.
हा हाहा हा.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बेहतरीन. सारे शेर एक से बढ़कर एक. पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी. .
हैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगा
कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा
वह , क्या बात कही है । अति सुन्दर सुमन जी ।
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा !! bahut sundar !!
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा !! bahut sundar !!
सोचता था भाव रक्तिम बस केवल मेरे ही हैं,
आपके शब्दों में बँध कर झूमना अच्छा लगा ।
उसने हाल पूछा तो सब अच्छा लगने लगा ...दुःख में सुख का आभास हुआ ...
ऐसा ही होता है ...जब मन खुश तो सब अच्छा लगता है..
सुन्दर गीत ...!
दे गया संकेत पतझड़ आगमन ऋतुराज का
तब भ्रमर के संग सुमन को झूमना अच्छा लगा
वाह क्या बात लिखी अपने
एक पंक्ति याद आ गई
कौन आज आया सवेरे सवरे
गया मन का धीरज बड़ी बेकली सी
उनके साथ समय बिताना अच्छा लगा
हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगा
दादी को आपके घर रहना अच्छा लगा
जनवादी लेक्ख संघ से सम्मान अच्छा लगा
सबसे अधिक अपने परिवार सम्मान मिला
Aapki gazal padhna achchha laga.
रिश्ते टूटेंगे बनेंगे जिन्दगी की राह में
साथ अपनों का मिला तो घूमना अच्छा लगा
जब साथ अपनों का हो तो ... पर कब तक
सुन्दर अल्फाज और बेहतरीन भाव की रचना
हैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगा
...इस शेर को छोड़कर बाक़ी सभी शेर अच्छे लगे . इस शेर के भाव अच्छे हैं लेकिन किसी दुसरे तरीके से कहा जाता तो और अच्छा होता.
इस शेर को मैंने यूं पढ़ा ..
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसका घर को चूमना अच्छा लगा
..मुझे तो यही अच्छा लगा ..आपने जो लिखा, वह भी अच्छा है.
...मैंने ज्यादा दिमाग लगाया इससे नाराज न हों गजल की खूबसूरती ने लिखने का मन किया सो लिख दिया.
कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा
bahut khoob shubhakaamanaayen
कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा
sumadhur, bahut hi meetha
wah-wah bahut hikhoobsurati se aapka ye gazal likhana achcha laga.aage bhi aise hipost padhne ko milangi
yah jaan kar man ko bahut hi achcha laga.
poonam
हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगा
bahut khubsurat rachna...
अच्छा लगा.सुन्दर गीत!
धन्यवाद.
बहुत सुन्दर भाव....अच्छा लगा ..यह गीत
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
हैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगा
सम्मानिय shyam jee ,
प्रणाम !
आप कि पूरी रचना अच्छी है मगर मेरी पसंद कि पंक्तियाँ आप को नज़र है ,
सादर
ek sundar bangi!
सुन्दर अल्फाज और बेहतरीन भाव की रचना
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