सबकी है सरकार प्रभु
क्या सबको अधिकार प्रभु
आमलोग हैं मुश्किल में
इतना अत्याचार प्रभु
साफ छवि लाजिम जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु
मँहगाई, आतंकी सुरसा
दिल्ली है लाचार प्रभु
रिश्ते - नाते आज बने
क्यों कच्चा व्यापार प्रभु
अवसर सबको मिल पाए
तब जीवन श्रृंगार प्रभु
लोग खोजते जीवन में
जीने का आधार प्रभु
देव-भूमि भारत में अब
क्यों सबकुछ बेकार प्रभु
हर युग में करते आये
जुल्मों का संहार प्रभु
सुमन आस को तोडो मत
क्या लोगे अवतार प्रभु
क्या सबको अधिकार प्रभु
आमलोग हैं मुश्किल में
इतना अत्याचार प्रभु
साफ छवि लाजिम जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु
मँहगाई, आतंकी सुरसा
दिल्ली है लाचार प्रभु
रिश्ते - नाते आज बने
क्यों कच्चा व्यापार प्रभु
अवसर सबको मिल पाए
तब जीवन श्रृंगार प्रभु
लोग खोजते जीवन में
जीने का आधार प्रभु
देव-भूमि भारत में अब
क्यों सबकुछ बेकार प्रभु
हर युग में करते आये
जुल्मों का संहार प्रभु
सुमन आस को तोडो मत
क्या लोगे अवतार प्रभु
17 comments:
मँहगाई, आतंकी डर से
दिल्ली है लाचार प्रभु
वाकई लाचार है. बहुत सुन्दर रचना
साफ छवि लाजिम है जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु
अतिसुन्दर इस रचना के माध्यम से आपने बखूबी बयां किया है...
साफ छवि लाजिम है जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
राजभाषा हिंदी पर मुग़ल काल में सत्ता का संघर्ष
मनोज पर फ़ुरसत में...भ्रष्टाचार पर बतिया ही लूँ !
बहुत अच्छी रचना ...देश की सही परिस्थिति को बताती हुई
मँहगाई, आतंकी डर से
दिल्ली है लाचार प्रभु
अति सुन्दर रचना
श्यामल जी
चिरंजीव भव:
साफ छवि लाजिम है जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु
बहुत अद्धभुत याचना
फिर आपने लिखा
लोग खोजते अब जीवन में
जीने का आधार प्रभु
एकदम सच हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है
सुना युगों से करते आये
जुल्मों का संहार प्रभु
कितने दर्द से लिखी पंक्ति
इतने जुल्म सहने के बाद
आखिर क्या हैं उसके ह्रदय के भीतर
श्यामल जी व्यथा सकार हुई है,
किसको है इन्कार प्रभु॥
रिश्ते-नाते आज बने
क्यों कच्चा-सा व्यापार प्रभु..
--
प्रश्न और उत्तर
साथ में आशा
गज़ल में सहेजी है
सुन्दर अभिलाषा!
--
बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
रिश्ते-नाते आज बने
क्यों कच्चा-सा व्यापार प्रभु..
--
प्रश्न और उत्तर
साथ में आशा
गज़ल में सहेजी है
सुन्दर अभिलाषा!
--
बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
ओह...क्या लिखा है आपने ....लाजवाब !!!
यथार्थ को प्रभावशाली ढंग से उकेरती अतिसुन्दर रचना..
हर दोहा मन में उतर दाद लूट गया....
भैया,बीच बीच में आप लम्बी रेलयात्राएँ करते रहिये..
अवसर सबको मिले बराबर
यह जीवन श्रृंगार प्रभु
waah!
sundar!!!
अवसर सबको मिले बराबर
यह जीवन श्रृंगार प्रभु
waah!
sundar!!!
सुमन आस है, नहीं डरोगे
क्या लोगे अवतार प्रभु।
बेहतरीन रचना, बेहतरीन भाव।
i liked it.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
श्यामल जी
चिरंजीव भव:
देव-भूमि भारत में अब तो
लगता सब बेकार प्रभु
बहुत वेदना है आपकी कविता में
मेरी भी विनती सुन लीजीये
बलिदान की हो मेरी डगर
यही मांगती हूँ मै तुमसे वर
सच है,
कर डालो संहार प्रभु।
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