Saturday, October 30, 2010

दिल्ली से गाँव तक

अंदाज उनका कैसे बिन्दास हो गया
महफिल में आम कलतक वो खास हो गया
जिसे कैद में होना था संसद चले गए,
क्या चाल सियासत की आभास हो गया

रुकते ही कदम जिन्दगी मौत हो गयी
प्रतिभा जो होश में थी क्यों आज सो गयी
कल पीढ़ियाँ करेंगी इतिहास से सवाल,
क्यों मुल्क बचाने की नीयत ही खो गयी

मरते हैं लोग भूखे बिल्कुल अजीब है
सड़ते हैं वो अनाज जो बिल्कुल सजीव है
जल्दी से लूट बन्द हो दिल्ली से गाँव तक,
फिर कोई कैसे कह सके भारत गरीब है

आतंकियों का मतलब विस्तार से यारो
शासन की कोशिशे भी संहार से यारो
फिर भी हैं लोग खौफ में तो सोचता सुमन,
नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो

14 comments:

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी


कल पीढ़ियाँ करेंगी इतिहास से सवाल,
क्यों मुल्क बचाने की नीयत ही खो गयी
नहीं हिम्मत हो रही देश के दुःख और दुखी जनता की वेदना
यही जवाब देंगे

अमन चोर देश का अमन बेचते हैं
वे दिल्ली में बैठे वतन वेचते हैं

M VERMA said...

नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो

यकीनन नक्सल तो है ही नक्सल पर सरकार भी जब नक्सली होने लगे तो ...
सुन्दर रचना

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना !!

अनुपमा पाठक said...

नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो
vartamaan stithiyon ko sundarta se pratyaksh kiya hai!
regards,

प्रवीण पाण्डेय said...

जिसे कैद में होना था संसद चले गए,

यही चाल है सियासत, पर्दाफाश हो गया।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अंदाज उनका कैसे बिन्दास हो गया
कल तक जो आम था वही अब खास हो गया
--
सुन्दर नज्म है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक बातें की हैं ..अनाज सद् रहा है लोंग भूखे हैं , जिसकी जगह जेल थी वो संसद में है ..बहुत खूब

डॉ टी एस दराल said...

बहुत बेबाक रचना ।
लेकिन आजकल सच को कौन सुनना चाहता है ।

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhaayi jaan dilli srkar ki dukhti ns pr haath rkh diya he bhut khub kmaal kr diya he bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

राज भाटिय़ा said...

जिसे कैद में होना था संसद चले गए,
यही चाल है सियासत, पर्दाफाश हो गया।
कोई तो आ कर इन से हिसाब पुछेगा... बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

चन्द्र कुमार सोनी said...

ati-uttam.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

GUDDODADI said...

फिर भी हैं लोग खौफ में तो सोचता सुमन,
नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो
वार्ताकारों से आतंकियों ने कहा !
जो यक़ीन तुम पर है हमको, नेताओं पर नहीं रहा !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

Roshani Sahu said...

शानदार रचना सुमन जी. और वाकई में जिन्हें हम कल थोड़ा बहुत अपना समझते थे आज वे सब सो गए, लगता है. "नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो ...." हकीकत को बयां करती आपकी यह रचना तारीफे काबिल है.

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