हमेशा भीड़ में फिर भी अकेलापन मेरी किस्मत
क्यूँ अपनों से,खुदा से भी, मिली कोई नहीं रहमत
जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत
थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ
इशारों को नहीं समझे उसे नादान मत कहना
मगर है प्यार हर दिल में कभी अनजान मत कहना
कोई मजबूरी ऐसी जो समझकर भी नहीं समझे
नहीं हो इश्क जिस दिल में उसे इन्सान मत कहना
हुई है देर कुछ ज्यादा सुमन तुमको समझने में
हृदय का द्वंद है कारण समय बीता उलझने में
मगर परवाह किसको है फुहारें प्रेम की सुरभित
मिलेंगे नैन चारों जब नहीं देरी बरसने में
Saturday, May 28, 2011
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रचना में विस्तार
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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16 comments:
नहीं हो इश्क जिस दिल में उसे इन्सान मत कहना--
बहुत सुन्दर मुक्तक हैं सभी ।
इश्क इंसानियत से भी होता है ।
कमाल की अभिव्यक्ति।
थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ
-क्या बात है...वाह!
अकेलेपन के भाव को सलीके से शब्दचित्रों में उकेराहै आपने।
---------
गुडिया रानी हुई सयानी..
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ
दमदार पंक्तियाँ।
थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ
वाह्…………यही शाश्वत सत्य है आस है मगर तडप भी है…………सुन्दर भावाव्यक्ति।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
क्या बात हे जी, बहुत सुंदर शव्दो मे दिल के दर्द को व्यान किया आप ने, धन्यवाद
मुक्तक की सभी पंक्तियाँ लाजवाब ......
सभी पंक्तियाँ लाजवाब है...
इशारों को नहीं समझे उसे नादान मत कहना
मगर है प्यार हर दिल में कभी अनजान मत कहना
कोई मजबूरी ऐसी जो समझकर भी नहीं समझे
नहीं हो इश्क जिस दिल में उसे इन्सान मत कहना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत
....बहुत सटीक और लाज़वाब प्रस्तुति..
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ रही हूँ, मैं ही खोज नहीं पा रही थी या फिर आप छुप कर लिख रहे थे ये तो नहीं पता.
बहुत सुंदर लिखा और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आभार.
श्यामल सुमन जी मन के हहरते हुए जज्बातों को खूबसूरती से पिरोया आप ने बहुत खूब -बधाई हों निम्न बहुत अच्छी पंक्तियाँ
जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत
शुक्ल भ्रमर 5
जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत
बहुत ही अच्छी रचना है
वाह क्या बात है के स्थान पर मैं तो कहूँगी....क्या बात है?????
वैसे आपके लेखन की क्या कहूँ...जिस भाव रंग की स्याही भर उसे कागज पर उतारते हैं, हमें सीखने का अवसर मिल जाता है कि इस रंग को कागज पर कैसे उतारा जाता है...
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