Saturday, May 28, 2011

अकेलापन मेरी किस्मत

हमेशा भीड़ में फिर भी अकेलापन मेरी किस्मत
क्यूँ अपनों से,खुदा से भी, मिली कोई नहीं रहमत
जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत

थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ

इशारों को नहीं समझे उसे नादान मत कहना
मगर है प्यार हर दिल में कभी अनजान मत कहना
कोई मजबूरी ऐसी जो समझकर भी नहीं समझे
नहीं हो इश्क जिस दिल में उसे इन्सान मत कहना

हुई है देर कुछ ज्यादा सुमन तुमको समझने में
हृदय का द्वंद है कारण समय बीता उलझने में
मगर परवाह किसको है फुहारें प्रेम की सुरभित
मिलेंगे नैन चारों जब नहीं देरी बरसने में

16 comments:

डॉ टी एस दराल said...

नहीं हो इश्क जिस दिल में उसे इन्सान मत कहना--
बहुत सुन्दर मुक्तक हैं सभी ।
इश्क इंसानियत से भी होता है ।

Darshan Lal Baweja said...

कमाल की अभिव्यक्ति।

Udan Tashtari said...

थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ

-क्या बात है...वाह!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अकेलेपन के भाव को सलीके से शब्‍दचित्रों में उकेराहै आपने।

---------
गुडिया रानी हुई सयानी..
सीधे सच्‍चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।

प्रवीण पाण्डेय said...

थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ

दमदार पंक्तियाँ।

vandana gupta said...

थपेड़ों को समझता हूँ हिलोरें भी समझता हूँ
हृदय की वेदना के संग हमेशा तुम पे मरता हूँ
सुमन तकदीर ऐसी क्यों कि पानी है मगर प्यासा
मगर है आस इक हरदम न जाने क्यों तरसता हूँ

वाह्…………यही शाश्वत सत्य है आस है मगर तडप भी है…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

राज भाटिय़ा said...

क्या बात हे जी, बहुत सुंदर शव्दो मे दिल के दर्द को व्यान किया आप ने, धन्यवाद

Kusum Thakur said...

मुक्तक की सभी पंक्तियाँ लाजवाब ......

समय चक्र said...

सभी पंक्तियाँ लाजवाब है...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इशारों को नहीं समझे उसे नादान मत कहना
मगर है प्यार हर दिल में कभी अनजान मत कहना
कोई मजबूरी ऐसी जो समझकर भी नहीं समझे
नहीं हो इश्क जिस दिल में उसे इन्सान मत कहना

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Kailash Sharma said...

जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत

....बहुत सटीक और लाज़वाब प्रस्तुति..

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत दिनों बाद आपको पढ़ रही हूँ, मैं ही खोज नहीं पा रही थी या फिर आप छुप कर लिख रहे थे ये तो नहीं पता.
बहुत सुंदर लिखा और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आभार.

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

श्यामल सुमन जी मन के हहरते हुए जज्बातों को खूबसूरती से पिरोया आप ने बहुत खूब -बधाई हों निम्न बहुत अच्छी पंक्तियाँ
जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत

शुक्ल भ्रमर 5

रजनीश तिवारी said...

जहाँ रिश्ते नहीं अक्सर वहीं पर प्रेम मिलता है
मगर रिश्ते जहाँ होते क्यूँ मिलती है वहीं नफरत
बहुत ही अच्छी रचना है

रंजना said...

वाह क्या बात है के स्थान पर मैं तो कहूँगी....क्या बात है?????

वैसे आपके लेखन की क्या कहूँ...जिस भाव रंग की स्याही भर उसे कागज पर उतारते हैं, हमें सीखने का अवसर मिल जाता है कि इस रंग को कागज पर कैसे उतारा जाता है...

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