कंचन चमक शरीर है
मगर आँख में नीर है
जिसकी चाहत वही दूर में
कैसी यह तकदीर है
मिल न पाते मिलकर के भी
किया लाख तदबीर है
लोक लाज की मजबूती से
हाथों में जंजीर है
दिल की बातें कहना मुश्किल
परम्परा शमसीर है
प्रेम परस्पर न हो दिल में
व्यर्थ सभी तकरीर है
पी कर दर्द,खुशी चेहरे पर
यही सुमन तस्वीर है
Monday, June 6, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ-
9 comments:
कंचन चमक शरीर है
मगर आँख में नीर है
bahut badhiya ....dil ko chhoo lene wali kavita
अपना मन मैं कह ना पाया,
जो कहता वह नीर है।
bahut pyari si rachna....:)
waah waah waah
ati uttam !
इतनी छोटी बहर में इतनी प्यारी रचना, सचमुच कमाल कर दिया आपने।
---------
बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?
वाह...वाह...वाह...
कंचन चमक शरीर है
मगर आँख में नीर है
जिसकी चाहत वही दूर में
कैसी यह तकदीर है
मिल न पाते मिलकर के भी
किया लाख तदबीर है
लोक लाज की मजबूती से
हाथों में जंजीर है
वाहवाह ,,,, आपने तो गागर में सागर भर दिया है ......
लोक लाज की मजबूती से
हाथों में जंजीर है
दिल की बातें कहना मुश्किल
परम्परा शमसीर है
बहुत सुन्दर शेर...वाह !
कंचन चमक शरीर है
मगर आँख में नीर है
NI:shabd kar diya
Post a Comment