भावना का जोश दिल में सीख लो रूकना ज़रा
हो नजाकत वक्त की तो वक्त पे झुकना ज़रा
जो उठाते जिन्दगी में हर कदम को सोच कर
जिन्दगी आसान बनकर तब लगे अपना ज़रा
लोग तो मजबूर होकर मुस्कुराते आज कल
है सहज मुस्कान पाना क्यों कठिन कहना ज़रा
हो नजाकत वक्त की तो वक्त पे झुकना ज़रा
जो उठाते जिन्दगी में हर कदम को सोच कर
जिन्दगी आसान बनकर तब लगे अपना ज़रा
लोग तो मजबूर होकर मुस्कुराते आज कल
है सहज मुस्कान पाना क्यों कठिन कहना ज़रा
टूटते तो टूट जाएँ पर सपन जिन्दा रहे
जिन्दगी है तबतलक ही देख फिर सपना ज़रा
जिन्दगी है तबतलक ही देख फिर सपना ज़रा
दूरियाँ अपनों से प्रायः गैर से नजदीकियाँ
स्वार्थ अपनापन में हो तो दूर ही रहना ज़रा
खेल शब्दों का नहीं अनुभूतियों के संग में
बात लोगों तक जो पहुंचे बात वो लिखना ज़रा
जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
अबतलक खुशियाँ मिली वो याद कर चलना ज़रा
स्वार्थ अपनापन में हो तो दूर ही रहना ज़रा
खेल शब्दों का नहीं अनुभूतियों के संग में
बात लोगों तक जो पहुंचे बात वो लिखना ज़रा
जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
अबतलक खुशियाँ मिली वो याद कर चलना ज़रा
7 comments:
जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
सारी खुशियों को समेटो कर शुरू जीना ज़रा
सही कहा जी ,खुशियां ही सब के जीवन में आणि चाहिए ..वरना दुःख तो हर कोई दे जाता हैं !
Lajwab, behtreen rachna,
kamal kar diya apne,,
jai hind jai bharat........
खेल शब्दों का नहीं अनुभूतियों के संग में
बात लोगों तक जो पहुंचे बात वो लिखना ज़रा
कितना सही कहा आपने...
इस धर्म को जो अपनाए,वही सही मायने में रचनाकार है...
बहुत ही सुन्दर रचना रची आपने...सदैव की भांति...
जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
अबतलक खुशियाँ मिली जो याद कर चलना ज़रा..
बहुत सुन्दर गज़ल...हरेक शेर एक सार्थक सन्देश देता हुआ..
लोग तो मजबूर होकर मुस्कुराते आज कल
है सहज मुस्कान पाना क्यों कठिन कहना ज़रा
टूटते तो टूट जाएँ पर सपन जिन्दा रहे
जिन्दगी है तबतलक ही देख फिर सपना ज़रा
वाह ..बहुत खूबसूरत बात कही है ..लाजवाब गज़ल ..
खुशी याद कर बढ़ते जायें,
जितना संभव चढ़ते जायें।
दूरियाँ अपनों से प्रायः गैर से नजदीकियाँ
स्वार्थ अपनापन में हो तो दूर ही रहना ज़रा
ऐसा ही सही
ताली दो हाथों से
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