Saturday, January 21, 2012

लेखन के इस प्रांगण में

यूँ तो हम सब भाई भाई, लेखन के इस प्रांगण में
मगर सहजता की मँहगाई, लेखन के इस प्रांगण में

नमन सभी रचनाकारों को, जो प्रायः लिखते रहते
बरसों जिनसे प्रीत लगाई, लेखन के इस प्रांगण में

जिस रचना में हित समाज का, कहते हैं साहित्य उसे
फिर कैसी आपस में लड़ाई, लेखन के इस प्रांगण में

कुछ पाठक ऐसे भी होते, सबकी पढ़ते, चुप रहते
इसमें किसको, क्या कठिनाई, लेखन के इस प्रांगण में

कभी नहीं बेचारा बनकर, जी कर लिखने की कोशिश
लोग छींटते क्यों रोशनाई, लेखन के इस प्रांगण में

जिसने जैसा चश्मा पहना, वैसा दिखता रंग उसे 
अपने से अपनी ही बड़ाई, लेखन के इस प्रांगण में

कोमल भाव हृदय में जन्मे, तब कविता बन पाती है
जिसकी करते लोग खिंचाई, लेखन के इस प्रांगण में

लेखकगण परिवार एक है, भरे हुए विद्वान यहाँ
सीख रहा जिनसे कविताई, लेखन के इस प्रांगण में

मंच एक विद्यालय जैसा, मिल के सब लिखते पढ़ते
सुमन हृदय की ये सच्चाई, लेखन के इस प्रांगण में

14 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

डॉ टी एस दराल said...

कुछ पाठक ऐसे भी होते, सबकी पढ़ते, चुप रहते
इसमें किसको, क्या कठिनाई, ब्लागिंग के इस प्रांगण में

पढ़कर भी चुप रहते , कुछ क्यों न कहते
बात यही समझ न आई , ब्लागिंग के इस प्रांगण में। :)

शुभकामनायें आपको सुमन जी ।

संगीता पुरी said...

जिसने जैसा चश्मा पहना, दिखता वैसा रंग उन्हें
करते क्युँ अपनी ही बड़ाई, ब्लागिंग के इस प्रांगण में

वाह वाह !!

vidya said...

वाह वाह..........
बहुत बढ़िया...एक एक शब्द सटीक...
लाजवाब!!!

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत सुंदर लेखनी
शब्द शब्द सच में भीगा हुआ

सीधा दिल में उतरता चला गया

ये ब्लोगिंग अब एक नशा जैसे महसूस होने लगा हैं
करो तो मुसीबत ,ना करो तो और भी परेशानी

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद सदा सुखी रहो
जिसने जैसा चश्मा पहना, दिखता वैसा रंग उन्हें
करते क्युँ अपनी ही बड़ाई, ब्लागिंग के इस प्रांगण में
बहुत खूब बधाई
अब तो देखो ब्लागिंग ही हर पृष्ठ पर
ना जात ना पात वही ढाक के तीन पात ब्लागिंग

RITU BANSAL said...

सभी के बारे में लिख दिया आपने ..:)
kalamdaan.blogspot.com

अविनाश वाचस्पति said...

मन की सच्‍चाईयों का
विचारों की अंगडा़ईयों का
विवादों की शइनाईयों का
करते रहिए सदा स्‍वागत
चिट्ठाकारी के अंगने में
जो मजा है सच कहने में
नहीं वह कभी मन मसोसने में
सोचने का असर जाता नहीं
कविता पढ़े बिना रहा जाता नहीं।

प्रवीण पाण्डेय said...

हीर शब्द जो यहाँ व्याप्त थे, उनसे जुड़कर और आपसे,
कविता की तरुणाई पायी, ब्लॉगिंग के इस प्रांगण में

Anamikaghatak said...

wah wah.....prasanganuroop shabdo ka chayan

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन।


सादर

गुड्डोदादी said...

कभी नहीं बेचारा बनकर, जी कर लिखने की कोशिश
भला छींटना क्यों रोशनाई, ब्लागिंग के इस प्रांगण में

पूरी कविता में सच ही सच
सुनार ने सोने को आग में तपा कर रूप निखार
दिया

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना! सच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! आपकी लेखनी को सलाम !

S R Bharti said...

मंच एक विद्यालय जैसा, मिल के सब लिखते पढ़ते
सुमन हृदय की ये सच्चाई,ब्लागिंग के इस प्रांगण में


बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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