ताकत जीने की मिले, वैसा दुख स्वीकार।
यह जीवन संघर्ष से, खुद पाता विस्तार।।
दुख ही बतलाता हमें, सुख के पल अनमोल।
मुँह में पानी, आँवला, लगता मिश्री-घोल।।
जामुन-सा तन रंग पर, हृदय चाँद का वास।
आकर्षक चेहरा लगे, पसरे स्वयं सुवास।।
जीवन परिभाषित नहीं, अलग सभी के रंग।
करते परिभाषित सभी, सबके अपने ढंग।।
मातम जहाँ पड़ोस में, सुन शहनाई आज।
हृदय यकायक रो पड़ा, कैसा हुआ समाज।।
चाहत सारे सुख मिले, मिहनत से परहेज।
शायद ऐसे लोग ही, माँगे आज दहेज।।
लेखन में अक्सर सुमन, अनुभव का गुणगान।
गम-खुशियों की चासनी, साहित्यिक मिष्ठान।।
यह जीवन संघर्ष से, खुद पाता विस्तार।।
दुख ही बतलाता हमें, सुख के पल अनमोल।
मुँह में पानी, आँवला, लगता मिश्री-घोल।।
जामुन-सा तन रंग पर, हृदय चाँद का वास।
आकर्षक चेहरा लगे, पसरे स्वयं सुवास।।
जीवन परिभाषित नहीं, अलग सभी के रंग।
करते परिभाषित सभी, सबके अपने ढंग।।
मातम जहाँ पड़ोस में, सुन शहनाई आज।
हृदय यकायक रो पड़ा, कैसा हुआ समाज।।
चाहत सारे सुख मिले, मिहनत से परहेज।
शायद ऐसे लोग ही, माँगे आज दहेज।।
लेखन में अक्सर सुमन, अनुभव का गुणगान।
गम-खुशियों की चासनी, साहित्यिक मिष्ठान।।
9 comments:
मातम जहाँ पड़ोस में, सुन शहनाई आज।
हृदय सुमन का रो पड़ा, कैसा हुआ समाज।।
विहल
कौन किसी के आंसूं पौंछे
हर कोई अपना सुख सोचे |
बहुत सुन्दर..
पता नहीं क्या से क्या हो गया..
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २१/८/१२ को http://charchamanch.blogspot.in/ पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
Eid mubarak ho!
दुख ही बतलाता हमें, सुख के पल अनमोल।
मुँह सुमन जब आँवला, पानी, मिश्री-घोल।।
Bahut Badhiya PAnktiyan
bhaut hi acchi....
बहुत सुन्दर दोहे
Bhut achha kha
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