Wednesday, August 22, 2012

क स म क श

कंचन  काया  कामिनी,  कायम  क्रम कुछ काल।
कायम  कई  कराल  के, कारण  कृश - कंकाल।।

सम्भव  सपने  से  सुलभ, सुन्दर - सा  सब साल।
समुचित  सहयोगी  सुमन,  सुलझे  सदा  सवाल।।

मन्द - मन्द  मुस्कान  में,  मस्त  मदन - मनुहार।
मारक   मुद्रा  मोहिनी,  मुदित   मीत   मन  मार।।

किससे  कब  कैसे  कहें,  करना  क्या कब काम।
कारण   कितने  कलह  के,  कहते  कई  कलाम।।

शय्या   शोभित   श्यामली,  शुद्ध   शुभंकर   शाम।
शिला शिखर शंकर शिविर, शिखा शमन शिवनाम।।

5 comments:

RITU BANSAL said...

वाह अति सुन्दर ..कठिन शब्दों का अर्थ भी दीजिये..तो चार चाँद लग जाएँ

प्रवीण पाण्डेय said...

जय हो, पढ़कर आनन्द आ गया।

गुड्डोदादी said...


मन्द मन्द मुस्कान में, मस्त मदन मनुहार।
मारक मुद्रा मोहिनी, मुदित मीत मन मार।।
(अति सुंदर छंद लिखने की गति न बंद
सुंदर शब्दों का ताल मेल बुद्धि बुलंद)

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह वाह.....
अब कोई इन दोहों के काव्य सौंदर्य की विवेचना और कर दे आनंद दो गुना हो जाए..
बहुत सुन्दर!!!!!!

अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुंदर दोहे ...

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