कंचन काया कामिनी, कायम क्रम कुछ काल।
कायम कई कराल के, कारण कृश - कंकाल।।
सम्भव सपने से सुलभ, सुन्दर - सा सब साल।
समुचित सहयोगी सुमन, सुलझे सदा सवाल।।
मन्द - मन्द मुस्कान में, मस्त मदन - मनुहार।
मारक मुद्रा मोहिनी, मुदित मीत मन मार।।
किससे कब कैसे कहें, करना क्या कब काम।
कारण कितने कलह के, कहते कई कलाम।।
शय्या शोभित श्यामली, शुद्ध शुभंकर शाम।
शिला शिखर शंकर शिविर, शिखा शमन शिवनाम।।
कायम कई कराल के, कारण कृश - कंकाल।।
समुचित सहयोगी सुमन, सुलझे सदा सवाल।।
मन्द - मन्द मुस्कान में, मस्त मदन - मनुहार।
मारक मुद्रा मोहिनी, मुदित मीत मन मार।।
किससे कब कैसे कहें, करना क्या कब काम।
कारण कितने कलह के, कहते कई कलाम।।
शिला शिखर शंकर शिविर, शिखा शमन शिवनाम।।
5 comments:
वाह अति सुन्दर ..कठिन शब्दों का अर्थ भी दीजिये..तो चार चाँद लग जाएँ
जय हो, पढ़कर आनन्द आ गया।
मन्द मन्द मुस्कान में, मस्त मदन मनुहार।
मारक मुद्रा मोहिनी, मुदित मीत मन मार।।
(अति सुंदर छंद लिखने की गति न बंद
सुंदर शब्दों का ताल मेल बुद्धि बुलंद)
वाह वाह.....
अब कोई इन दोहों के काव्य सौंदर्य की विवेचना और कर दे आनंद दो गुना हो जाए..
बहुत सुन्दर!!!!!!
अनु
बहुत सुंदर दोहे ...
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