जिसकी खातिर हम लिखते हैं
वे कहते कि गम लिखते हैं
आस पास का हाल देखकर
आँखें होतीं नम, लिखते हैं
पेट की ज्वाला शाँत हुई तो
आँसू को शबनम लिखते हैं
फूटे हैं गलती से पटाखे
थानेवाले बम लिखते हैं
प्रायोजित रचना को कितने
हो करके बेदम लिखते हैं
चकाचौंध में रहकर भी कुछ
अपने भीतर तम लिखते हैं
कागज करे सुमन क्यों काला
काम की बातें हम लिखते हैं।
वे कहते कि गम लिखते हैं
आस पास का हाल देखकर
आँखें होतीं नम, लिखते हैं
पेट की ज्वाला शाँत हुई तो
आँसू को शबनम लिखते हैं
फूटे हैं गलती से पटाखे
थानेवाले बम लिखते हैं
प्रायोजित रचना को कितने
हो करके बेदम लिखते हैं
चकाचौंध में रहकर भी कुछ
अपने भीतर तम लिखते हैं
कागज करे सुमन क्यों काला
काम की बातें हम लिखते हैं।
17 comments:
दिन भर भाव विषम उठते हैं,
शाम हुयी तो सम लिखते हैं
शुभकामनायें ।
लिखे निरर्थक अधिक पर, करे काम की बात ।
दुनिया में खुश्बू भरे, दे नफरत को मात ।।
जिसकी खातिर हम लिखते हैं
वे कहते कि गम लिखते हैं
Gam hai to gam likhenge....kya karen!
वाह...
बहुत सुन्दर...
चकाचौंध में रहकर भी कुछ
अपने भीतर तम लिखते हैं...
ये तो लाजवाब..
अनु
बहुत खुब.
बहुत खुब.
वाह वाह वे क्या लिखते हैं ।
दूसरों के गम देख आय अश्रू
अपने तम बहुत कम लगते हैं
बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . आभार .
हम हिंदी चिट्ठाकार
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
नारी के अकेलेपन से पुरुष का अकेलापन ज्यादा घातक
बहुत सुंदर मन के भाव ...
प्रभावित करती रचना .
वाह ऑंसू को शबनम लिखते हैं
बहुत बढ़िया रचना
बेहद सार्थक पोस्ट
खूबसूरत प्रस्तुति
बहुत खूब.....
बहुत खूब..
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